((((( भगवान की प्लानिंग )))))


एक बार भगवान से उनका सेवक कहता है, भगवान आप एक जगह खड़े-खड़े थक गये होंगे.
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एक दिन के लिए मैं आपकी जगह मूर्ति बन कर खड़ा हो जाता हूं, आप मेरा रूप धारण कर घूम आओ.
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भगवान मान जाते हैं, लेकिन शर्त रखते हैं कि जो भी लोग प्रार्थना करने आयें, तुम बस उनकी प्रार्थना सुन लेना. कुछ बोलना नहीं.
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मैंने उन सभी के लिए प्लानिंग कर रखी है. सेवक मान जाता है.
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सबसे पहले मंदिर में बिजनेस मैन आता है और कहता है, भगवान मैंने एक नयी फैक्ट्री डाली है, उसे खूब सफल करना.
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वह माथा टेकता है, तो उसका पर्स नीचे गिर जाता है. वह बिना पर्स लिये ही चला जाता है.
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सेवक बेचैन हो जाता है. वह सोचता है कि रोक कर उसे बताये कि पर्स गिर गया, लेकिन शर्त की वजह से वह नहीं कह पाता.
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इसके बाद एक गरीब आदमी आता है और भगवान को कहता है कि घर में खाने को कुछ नहीं. भगवान मदद कर.
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तभी उसकी नजर पर्स पर पड़ती है. वह भगवान का शुक्रिया अदा करता है और पर्स लेकर चला जाता है.
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अब तीसरा व्यक्ति आता है. वह नाविक होता है.
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वह भगवान से कहता है कि मैं 15 दिनों के लिए जहाज लेकर समुद्र की यात्रा पर जा रहा हूं. यात्रा में कोई अड़चन न आये भगवान.
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तभी पीछे से बिजनेस मैन पुलिस के साथ आता है और कहता है कि मेरे बाद ये नाविक आया है.
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इसी ने मेरा पर्स चुरा लिया है. पुलिस नाविक को ले जा रही होती है कि सेवक बोल पड़ता है.
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अब पुलिस सेवक के कहने पर उस गरीब आदमी को पकड़ कर जेल में बंद कर देती है.
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रात को भगवान आते हैं, तो सेवक खुशी खुशी पूरा किस्सा बताता है.
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भगवान कहते हैं, तुमने किसी का काम बनाया नहीं, बल्कि बिगाड़ा है.
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वह व्यापारी गलत धंधे करता है. अगर उसका पर्स गिर भी गया, तो उसे फर्क नहीं पड़ता था.
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इससे उसके पाप ही कम होते, क्योंकि वह पर्स गरीब इंसान को मिला था. पर्स मिलने पर उसके बच्चे भूखों नहीं मरते.
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रही बात नाविक की, तो वह जिस यात्रा पर जा रहा था, वहां तूफान आनेवाला था.
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अगर वह जेल में रहता, तो जान बच जाती. उसकी पत्नी विधवा होने से बच जाती. तुमने सब गड़बड़ कर दी.
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कई बार हमारी लाइफ में भी ऐसी प्रॉब्लम आती है, जब हमें लगता है कि ये मेरा साथ ही क्यों हुआ.
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लेकिन इसके पीछे भगवान की प्लानिंग होती है.
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जब भी कोई प्रॉब्लमन आये. उदास मत होना.
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इस कहानी को याद करना और सोचना कि जो भी होता है, अच्छे के लिए होता है.

हुनर होता है हर किसी में

आज के समय में सामने आ रही संभावनाओं को पहचानने और अवसर का लाभ उठाने के लिए सबसे जरूरी अपने हुनर को पहचानना है। खुद को कमतर समझने की बजाय अपने हुनर को जानकर उसे तराशें, तभी आप बदलते वक्त के साथ आगे बढ़ सकेंगे। कैसे बढ़ें इस राह पर, बता रहे हैं इस आलेख में-

काउंसलिंग की प्रक्रिया के दौरान अक्सर इस तरह के पत्र और ई-मेल आते हैं, जिनका आशय होता है कि मैंने इस संकाय में व्यवसायिक कोर्स किया है, लेकिन अनुभव न होने के कारण कोई काम या नौकरी नहीं मिल रही या पिफर मैं परीक्षा में नंबर तो ज्यादा लाना चाहता हूं, पर पढ़ाई के लिए ज्यादा समय नहीं दे पाता या मन ही नहीं लगता। यह भी कि कोर्स पूरा किए एक साल हो गया, लेकिन अभी तक कोई नौकरी नहीं मिली..।

अगर ऐसे पत्र लिखने वालों की भाषा पर मनोवैज्ञानिक नजरिए से विचार करें या पिफर ऐसे लोगों के मन में झांकने का प्रयास करें तो यही लगता है कि ऐसे लोग बेशक अपनी नजरों में खुद को कमजोर पा रहे हों, लेकिन इनमें अपनी पहचान की जिजीविषा जरूर है। उनके भीतर कहीं न कहीं अपनी पहचान बनाने की बेचैनी नजर आती है। अगर ऐसा नहीं होता, तो शायद वे ज्यादा नंबर या अच्छी नौकरी पाने के लिए बेचैन नहीं होते। इनमें से अध्कितर के सपने इसलिए पूरे नहीं हो पाते, क्योंकि ज्यादातर को अपने भीतर छिपे हुनर का पता ही नहीं होता। यही कारण है कि वे अपनी अंतर्निहित प्रतिभा का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं।

पहचान पाने की आकांक्षा
आलोचना किसी को भी अच्छी नहीं लगती। बुरे से बुरा व्यक्ति भी अपनी आलोचना शायद ही बर्दाश्त कर पाता है। इसका मतलब यह है कि हर किसी के भीतर जो स्वाभिमान होता है वही उनमें अपनी पहचान की इच्छा जगाता है। अगर आप किसी परीक्षा में अच्छे अंक या अच्छी नौकरी पाना चाहते हैं, तो इसका अर्थ यही है कि आपके मन में कहीं न कहीं प्रतिस्पर्ध का भी भाव है। जिस समाज में आप रह रहे हैं, उसमें दूसरों की व्यंग्यात्मक नजरों का सामना करने में आपको कहीं न कहीं तकलीपफ होती है। आप इस स्थिति से उबरना तो चाहते हैं, पर आलस्य की आदत या किसी दूसरी कमजोरी के कारण ऐसा नहीं कर पाते। यह स्थिति अध्कि समय तक जारी रहने पर व्यक्ति प्रायः निराशा के अंध्कार में डूबने लगता है।

हुनर को जानें
आप आगे निकलना चाहते हैं, घर-परिवार-समाज और इष्ट-मित्रों में अलग पहचान बनाना चाहते हैं, तो आपको सबसे पहले अपने भीतर छिपे हुनर को खोज निकालना होगा। याद रखें, इस संसार में कोई भी इंसान ऐसा नहीं है, जिसके भीतर कोई न कोई गुण न हो। इसलिए यह हीन भावना अपने भीतर से निकाल पफेंके कि आपको कुछ नहीं आता या आप पूरी तरह से नकारा हैं। दूसरों के बुरा-भला कहने की परवाह करने की बजाय इस बात की परवाह और समीक्षा करें कि आखिर वे आपको ऐसा क्यों कहते-समझते हैं? आखिर आपकी वह कौन-सी खराबी है, जो उन्हें रास नहीं आती।

दूर भगाएं कमजोरी
दूसरे आपको क्या कहते और समझते हैं, इसकी परवाह न करें। हां, जिस दिन आपकी अंतरात्मा आप पर सवाल उठाने लगे, समझ लें कि आपके जागने का समय आ गया है। बिना समय गंवाए, अपनी कमजोरियों की तलाश शुरू कर दें। इस बात का विश्लेषण करें कि आखिर वे कौन-से कारण हैं, जिनकी वजह से असपफलता मिलती रही है या पिफर आप मनोवांछित परिणाम नहीं हासिल कर पा रहे। इसके बाद एक-एक करके इन कमजोरियों को दूर भगाने की कोशिश करें।

ईमानदारी से करें प्रयास
आप दूसरों को तो धेखा दे सकते हैं, लेकिन अपने आपको कतई नहीं। इसलिए कमजोरियों को दूर करने के बाद समुचित रणनीति के साथ अपनी मंजिल की दिशा में ईमानदारी से कदम बढ़ाएं। आलस्य से दूर रहें। मन में बिठा लें कि किसी भी तरह से लक्ष्य हासिल करना है, चाहे इसके लिए कितनी भी मेहनत क्यों न करनी पड़े।

उत्साह और आत्मविश्वास
पढ़ाई या करियर में आगे बढ़ने और पहचान बनाने के लिए उमंग और उत्साह बेहद जरूरी है। आप जो भी काम कर रहे हैं, उसे पूरे उत्साह के साथ करें। उत्साह होने पर कोई भी काम मुश्किल नहीं लगेगा इसके साथ अपने आत्मविश्वास को कभी कम न होने दें। किसी भी लक्ष्य को सकारात्मक नजरिए से देखें।

चलें वक्त के साथ

आप जो भी कोर्स कर रहे हैं या विषय पढ़ रहे हैं, अगर उसमें आपका मन नहीं लग रहा तो समय रहते उसे बदल लें। अगर कापफी आगे निकल चुके हैं, जहां से वापस लौटना संभव नहीं, तो इस बात पर विचार करें कि कैसे उसी में मन लगा सकते हैं ताकि बेहतर परिणाम हासिल कर सकें। इसके अलावा, अगर काॅलेज या संस्थान इंडस्ट्री की आवश्यकता के अनुसार जरूरी प्रैक्टिकल ट्रेनिंग पर ध्यान नहीं दे रहे, तो खुद की पहल से ऐसी ट्रेनिंग हासिल करने का प्रयास करें। आखिर आपके बेहतर करियर का सवाल जो है। इसके लिए समय निकालें कंपनियों या संस्थानों में संपर्क करें। प्रायोगिक जानकारी हासिल करें। भले ही इसके एवज में शुरुआत में पैसे न मिलें। इस तरह पढ़ाई पूरी होने के साथ-साथ आप जरूरी स्किल भी हासिल कर लेंगे। काम नहीं मिल रही, तो आप अपनी पढ़ाई वाले क्षेत्रा में मार्केट या इंडस्ट्री की आवश्यकता के मुताबिक जरूरी प्रशिक्षण प्राप्त करें और खुद को लगातार अपडेट करते रहें।

अपनी खूबियों को जानें और उन्हें तराशें
आत्मविश्वास को उच्चशिखर पर रखें, ताकि किसी भी काम को उत्साह के साथ कर सकें। पढ़ाई और नौकरी के साथ-साथ अपनी कार्य क्षमता को अपडेट करते रहें, ताकि समय के साथ-साथ चलते हुए अपनी उपयोगिता साबित कर सकें।

Source : http://samacharsurbhi.com/?p=624

सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार


यह संसार हार और जीत का खेल अर्थात् नाटक है और इस नाटक मेँ अगर हार जाने की सम्भावना हो तो, जीतने के लिए आपको अपने फैसले बदलते रहना चाहिए लेकिन जीतना Confirm हो तो कभी हार नहीँ मानना चाहिए।

Note-सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है

सच्चा सुख क्या है

भगवान बुध्द के दर्शन करने तथा उनके प्रवचन सुनने वालों का तांता बँधा रहता. एक भक्त ने पूछा सच्चा सुख क्या है| तथागत ने उत्तर दिया, संदेह नहीं कि मानव के जीवन मे उतार चढ़ाव आते रहते हैं, कभी सुख तो कभी दुख कभी जीवन में आदर सत्कार मिलता है तो कभी अपमान भी झेलना पड़ता है|| जो वयक्ति विपरीत स्थितियों में भी मन का संतुलन बनाए रखता है, वह सदैव सुखी रहता है भगवान ने आगे समझाते हुए कहा कि हर अवस्था में अपने मन का संतुलन बनाए रखना घोर कष्टों में भी मुस्कराने की आदत बनाए रखना ही सुख की कुंजी है अपने को संयत रखने वाला दुख में भी सुख का अनुभव करता है|

Quotes2

जो आपके सामने किसी की बुराई कर सकता है तो
याद रखिए
किसी और के सामने वो आपकी भी बुराई जरुर करेगा
इसलिए किसी की बुराई ना सुने ना सुनाएँ

Motivational Quotes

अगर कोई मनुष्य जीवन की समस्या से छुटकारा पाने के लिए आत्महत्या कर भी लेता है तो अगले जन्म मेँ वह परिस्थिति उसके सामने फिर से आती है , क्योकि जीत पाने के लिए बुराई का सामना करना परम आवश्यक है।

पाप का फल


एक राजा ब्राह्मणों को लंगर में भोजन करा रहा था। तब पंक्ति के अंत मैं बैठे एक ब्राम्हण को भोजन परोसते समय एक चील
अपने पंजे में एक मुर्दा साँप लेकर राजा के उपर से गुजरी। और उस मुर्दा साँप के मुख से कुछ बुंदे जहर की खाने में गिर गई। किसी को कुछ पत्ता नहीं चला। फल स्वरूप वह ब्राह्मण जहरीला खाना खाते हीं मर गया। अब जब राजा को सच का पता चला तो ब्रम्ह हत्या होने से उसे बहुत दुख हुआ। मित्रों ऐसे में अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना मुश्किल हो
गया कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा ??? राजा... जिसको पता ही नहीं था कि खानाजहरीला हो गया है..
या वह चील... जो जहरीला साँप लिए राजा के उपर से गुजरी... या वह मुर्दा साँप... जो पहले से मर चुका था... दोस्तों बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका रहा। फिर कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य मे आए। और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा... तो उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया, पर रास्ता बताने के साथ- साथ ब्राम्हणों से ये भी कह दिया कि देखो भाई... "जरा ध्यान रखना, वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में जहर देकर मार देता है।"  



बस मित्रों जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे उसी समय यमराज ने फैसला ले लिया कि उस ब्राह्मण की मृत्यु के पाप
 का फल इस महिला के खातेमें जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा। यमराज के दूतों ने पूछा प्रभु ऐसा क्यों ? जबकि उस ब्राम्हण की हत्या में उस महिला की कोई भूमिका भी नही थी। तब यमराज ने कहा कि भाई देखो जब कोई व्यक्ति पाप करता हैं तब उसे आनंद मिलता हैं। पर उस ब्राम्हण की हत्या से न तो राजा को आनंद मिला न मरे हुए साँप को आनंद मिला और न ही उस चील को आनंद मिला... पर उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के भाव से बखान कर उस महिला को
जरूर आनंद मिला। इसलिये राजा के उस अनजाने पाप- कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा। बस मित्रों इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति जब किसी दुसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से (बुराई) करता हैं, तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा उस बुराई करने वाले के खाते में भी डाल दिया जाता हैं। 

दोस्तों अक्सर हम जीवन में सोचते हैं कि जीवन में ऐसा कोई पाप नही किया फिर भी जीवन में इतना कष्ट क्यों आया ? दोस्तों ये कष्ट और कहीं से नही बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण उनके पाप-कर्मो से आया होता हैं जिनको यमराज बुराई करते ही हमारे खाते में ट्रांसफर कर देते हैं।

इसलिये दोस्तों आज से ही संकल्प कर लो कि किसी के भी पाप-कर्मों का बखान बुरे भाव से नही करना, यानी किसी की भी
बुराई नही करनी हैं।

Value of Team work

शेरा नाम का शेर जंगल के सबसे कुशल और क्रूर शिकारियों में गिना जाता था . अपने दल के साथ उसने न जाने कितने भैंसों , हिरणो और अन्य जानवरों का शिकार किया था .
धीरे -धीरे उसे अपनी काबिलियत का घमंड होने लगा . एक दिन उसने अपने साथियों से कहा …” आज से जो भी शिकार होगा , उसे सबसे पहले मैं खाऊंगा …उसके बाद ही तुममे से कोई उसे हाथ लगाएगा .”
शेरा के मुंह से ऐसी बातें सुन सभी अचंभित थे … तभी एक बुजुर्ग शेर ने पुछा ,“ अरे …तुम्हें आज अचानक क्या हो गया … तुम ऐसी बात क्यों कर रहे हो ..?”,
शेरा बोला ,” मैं ऐसी -वैसी कोई बात नहीं कर रहा … जितने भी शिकार होते हैं उसमे मेरा सबसे बड़ा योगदान होता है … मेरी ताकत के दम पर ही हम इतने शिकार कर पाते हैं ; इसलिए शिकार पर सबसे पहला हक़ मेरा ही है …’
अगले दिन , एक सभा बुलाई गयी .
अनुभवी शेरों ने शेरा को समझाया , “ देखो शेरा , हम मानते हैं कि तुम एक कुशल शिकारी हो , पर ये भी सच है कि बाकी लोग भी अपनी क्षमतानुसार शिकार में पूरा योगदान देते हैं इसलिए हम इस बात के लिए राजी नहीं हो सकते कि शिकार पर पहला हक़ तुम्हारा हो …हम सब मिलकर शिकार करते हैं और हमें मिलकर ही उसे खाना होगा …”
शेरा को ये बात पसंद नहीं आई , अपने ही घमंड में चूर वह बोला , “ कोई बात नहीं , आज से मैं अकेले ही शिकार करूँगा … और तुम सब मिलकर अपना शिकार करना ..”
और ऐसा कहते हुए शेरा सभा से उठ कर चला गया।
कुछ समय बाद जब शेरा को भूख लगी तो उसने शिकार करने का सोचा , वह भैंसों के एक झुण्ड की तरफ दहाड़ते हुए बढ़ा , पर ये क्या जो भैंसे उसे देखकर काँप उठते थे आज उसके आने पर जरा भी नहीं घबराये , उलटे एक -जुट हो कर उसे दूर खदेड़ दिया .
शेरा ने सोचा चलो कोई बात नहीं मैं हिरणो का शिकार कर लेता हूँ , और वह हिरणो की तरफ बढ़ा , पर अकेले वो कहाँ तक इन फुर्तीले हिरणो को घेर पाता , हिरन भी उसके हाथ नहीं आये .
अब शेरा को एहसास हुआ कि इतनी ताकत होते हुए भी बिना दल का सहयोग पाये वो एक भी शिकार नहीं कर सकता . उसे पछतावा होने लगा , अब वह टीम-वर्क की इम्पोर्टेंस समझ चुका था , वह निराश बाकी शेरों के पास पहुंचा और अपने इस व्यवहार के लिए क्षमा मांग ली और एक बार फिर जंगल उसकी दहाड़ से कांपने लगा .
Friends, चाहे आप sports में हों , corporate world में काम करते हों , या कोई बिज़नेस करते हों ; team work की importance को समझना बहुत ज़रूरी है . Team का हर एक member important होता है और किसी भी goal को achieve करने में छोटा -बड़ा रोल play करता है . Naturally, सभी उँगलियाँ बराबर नहीं होती इसलिए team में भी किसी member का अधिक तो किसी का कम role होता है . पर यदि बड़ा योगदान देने वाले ये सोचें कि जो कुछ भी है उन्ही की वजह से है तो ये गलत होगा . इसलिए किसी तरह का घमंड करने की बजाये हमें सभी को importance देते हुए as a team player काम करना चाहिए .
इस कहानी में एक और बेहद ज़रूरी मैसेज है ,वो है गलती का एहसास होने पर क्षमा माँगना . शेरा को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने क्षमा मांग ली और एक बार फिर उसकी साख वापस लौट आई . अगर आपसे भी कभी कोई गलती हो जाए तो उसे Ego problem मत बनाइये और क्षमा मांग कर life को वापस track पर लाइए.

खुद को कंकड़ पत्थर मत समझो

एक राजा का दरबार लगा हुआ था क्योंकि सर्दी का दिन था इसलिये राजा का दरवार खुले मे बैठा था पूरी आम सभा सुबह की धूप मे बैठी थीl महाराज ने सिंहासन के सामने एक टेबल जैसी कोई कीमती चीज रखी थी पंडित लोग दीवान आदि सभी दरवार मे बैठे थे राजा के परिवार के सदस्य भी बैठे थे
उसी समय एक व्यक्ति आया और प्रवेश मागा . प्रवेश मिल गया तो उसने कहा मेरे पास दो वस्तुए है मै हर राज्य के राजा के पास जाता हू और अपनी बात रखता हू कोई परख नही पाता सब हार जाते है और मै विजेता बनकर घूम रहा हूँ अब आपके नगर मे आया हूँ
राजा ने बुलाया और कहा क्या बात है तो उसने दोनो वस्तुये टेबल पर रख दी बिल्कुल समान आकार समान रुप रंग समान प्रकाश सब कुछ नख सिख समान राजा ने कहा ये दोनो वस्तुए एक है तो उस व्यक्ति ने कहा हाँ दिखाई तो एक सी देती है लेकिन है भिन्न इनमे से एक है बहुत कीमती हीरा और एक है काँच का टुकडा लेकिन रूप रंग सब एक है
कोइ आज तक परख नही पाया की कौन सा हीरा है और कौन सा काँच कोइ परख कर बताये की ये हीरा है ये काँच अगर परख खरी निकली तो मे हार जाउगा और यह कीमती हीरा मै आपके राज्य की तिजोरी मे जमा करवा दूगां यदि कोइ न पहचान पाया तो इस हीरे की जो कीमत है उतनी धनराशि आपको मुझे देनी होगी इसी प्रकार मे कइ राज्यो से जीतता आया हूँ
राजा ने कहा मै तो नही परख सकूगा दीवान बोले हम भी हिम्मत नही कर सकते क्योंकि दोनो बिल्कुल समान है सब हारे कोइ हिम्मत नही जुटा पाया हारने पर पैसे देने पडेगे इसका कोई सवाल नही क्योकि राजा के पास बहुत धन है राजा की प्रतिष्ठा गिर जायेगी इसका सबको भय था कोइ व्यक्ति पहचान नही पाया
आखिरकार पीछे थोडी हलचल हुइ एक अंधा आदमी हाथ मे लाठी लेकर उठा उसने कहा मुझे महाराज के पास ले चलो मैने सब बाते सुनी है और यह भी सुना कि कोइ परख नही पा रहा है एक अवसर मुझे भी दो
एक आदमी के सहारे वह राजा के पास पहुचा उसने राजा से प्रार्थना की मै तो जनम से अंधा हू फिर भी मुझे एक अवसर दिया जाये जिससे मै भी एक बार अपनी बुद्धि को परखू और हो सकता है कि सफल भी हो जाऊ और यदि सफल न भी हुआ तो वैसे भी आप तो हारे ही है राजा को लगा कि इसे अवसर देने मे क्या हरज है राजा ने कहा ठीक है तो उस अंधे आदमी को दोनो चीजे छुआ दी गयी और पूछा गया इसमे कौन सा हीरा है और कौन सा काँच यही परखना है
कथा कहती है कि उस आदमी ने एक मिनट मे कह दिया कि यह हीरा है और यह काँच जो आदमी इतने राज्यो को जीतकर आया था वह नतमस्तक हो गया और बोला सही है आपने पहचान लिया धन्य हो आप अपने वचन के मुताबिक यह हीरा मै आपके राज्य की तिजोरी मे दे रहा हू सब बहुत खुश हो गये और जो आदमी आया था वह भी बहुत प्रसन्न हुआ कि कम से कम कोई तो मिला परखने वाला वह राजा और अन्य सभी लोगो ने उस अंधे व्यक्ति से एक ही जिज्ञासा जताई कि तुमने यह कैसे पहचाना कि यह हीरा है और वह काँच
उस अंधे ने कहा की सीधी सी बात है मालिक धूप मे हम सब बैठे है मैने दोनो को छुआ जो ठंडा रहा वह हीरा जो गरम हो गया वह काँच
जीवन मे भी देखना जो बात बात मे गरम हो जाये उलझ जाये वह काँच जो विपरीत परिस्थिति मे भी ठंडा रहे वह हीरा है..!!

शब्द की ताकत

एक नौजवान चीता पहली बार शिकार करने निकला। अभी वो कुछ ही आगे बढ़ा था कि एक लकड़बग्घा उसे रोकते हुए बोला, ” अरे छोटू , कहाँ जा रहे हो तुम ?”“मैं तो आज पहली बार खुद से शिकार करने निकला हूँ !”, 

चीता रोमांचित होते हुए बोला।“हा-हा-हा-“, लकड़बग्घा हंसा ,” अभी तो तुम्हारे खेलने-कूदने के दिन हैं , तुम इतने छोटे हो , तुम्हे शिकार करने का कोई अनुभव भी नहीं है , तुम क्या शिकार करोगे !!”लकड़बग्घे की बात सुनकर चीता उदास हो गया , दिन भर शिकार के लिए वो बेमन इधर-उधर घूमता रहा , कुछ एक प्रयास भी किये पर सफलता नहीं मिली और उसे भूखे पेट ही घर लौटना पड़ा।

अगली सुबह वो एक बार फिर शिकार के लिए निकला। कुछ दूर जाने पर उसे एक बूढ़े बन्दर ने देखा और पुछा , ” कहाँ जा रहे हो बेटा ?”“बंदर मामा, मैं शिकार पर जा रहा हूँ। ” चीता बोला।“बहुत अच्छे ” बन्दर बोला , ”तुम्हारी ताकत और गति के कारण तुम एक बेहद कुशल शिकारी बन सकते हो , जाओ तुम्हे जल्द ही सफलता मिलेगी।”यह सुन चीता उत्साह से भर गया और कुछ ही समय में उसनेके छोटे हिरन का शिकार कर लिया।


मित्रों , हमारी ज़िन्दगी में “शब्द” बहुत मायने रखते हैं। दोनों ही दिन चीता तो वही था, उसमे वही फूर्ति और वही ताकत थी पर जिस दिन उसे डिस्करेज कियागया वो असफल हो गया और जिस दिन एनकरेज किया गया वो सफल हो गया।इस छोटी सी कहानी से हम तीनज़रूरी बातें सीख सकते हैं :


पहली , हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम अपने “शब्दों” से किसी को encourage करें , discourage नहीं। Of course, इसका ये मतलब नहीं कि हम उसे उसकी कमियों से अवगत न करायें , या बस झूठ में ही एन्करजे करें।


दूसरी, हम ऐसे लोगों से बचें जो हमेशा निगेटिव सोचते और बोलते हों, और उनका साथ करें जिनका outlook positive हो।

तीसरी और सबसे अहम बात , हम खुद से क्या बात करते हैं , self-talk में हम कौन से शब्दों का प्रयोग करते हैं इसका सबसे ज्यादा ध्यान रखें , क्योंकि ये “शब्द” बहुत ताकतवर होते हैं , क्योंकि ये “शब्द” ही हमारे विचार बन जाते हैं , और ये विचार ही हमारीज़िन्दगी की हकीकतबन कर सामनेआते हैं , इसलिए दोस्तों , words की power को पहचानिये, जहाँ तक हो सके पॉजिटिव वर्ड्स का प्रयोग करिये , इस बात को समझिए कि ये आपकी ज़िन्दगी बदल सकते हैं।

भगवान (Bhagwan) का अस्तित्व :

एक बार एक व्यक्ति नाई की दुकान पर अपने बाल कटवाने गया| नाई और उस व्यक्ति के बीच में ऐसे ही बातें शुरू हो गई और वे लोग बातें करते-करते “भगवान” के विषय पर बातें करने लगे| 

तभी नाई ने कहा – “मैं भगवान (Bhagwan) के अस्तित्व को नहीं मानता और इसीलिए तुम मुझे नास्तिक भी कह सकते हो|” 

तुम ऐसा क्यों कह रहे हो” व्यक्ति ने पूछा|

नाई ने कहा – “बाहर जब तुम सड़क पर जाओगे तो तुम समझ जाओगे कि भगवान का अस्तित्व नहीं है| अगर भगवान (Bhagwan) होते, तो क्या इतने सारे लोग भूखे मरते? क्या इतने सारे लोग बीमार होते? क्या दुनिया में इतनी हिंसा होती? क्या कष्ट या पीड़ा होती? मैं ऐसे निर्दयी ईश्वर की कल्पना नहीं कर सकता जो इन सब की अनुमति दे|”

व्यक्ति ने थोड़ा सोचा लेकिन वह वाद-विवाद नहीं करना चाहता था इसलिए चुप रहा और नाई की बातें सुनता रहा|
नाई ने अपना काम खत्म किया और वह व्यक्ति नाई को पैसे देकर दुकान से बाहर आ गया| वह जैसे ही नाई की दुकान से निकला, उसने सड़क पर एक लम्बे-घने बालों वाले एक व्यक्ति को देखा जिसकी दाढ़ी भी बढ़ी हुई थी और ऐसा लगता था शायद उसने कई महीनों तक अपने बाल नही कटवाए थे| वह व्यक्ति वापस मुड़कर नाई की दुकान में दुबारा घुसा और 

उसने नाई से कहा – “क्या तुम्हें पता है? नाइयों का अस्तित्व नहीं होता”

नाई ने कहा – “तुम कैसी बेकार बातें कर रहे हो? क्या तुम्हे मैं दिखाई नहीं दे रहा? मैं यहाँ हूँ और मैं एक नाई हूँ| और मैंने अभी अभी तुम्हारे बाल काटे है|”

व्यक्ति ने कहा – “नहीं ! नाई नहीं होते हैं| अगर होते तो क्या बाहर उस व्यक्ति के जैसे कोई भी लम्बे बाल व बढ़ी हुई दाढ़ी वाला होता?”

नाई ने कहा – “अगर वह व्यक्ति किसी नाई के पास बाल कटवाने जाएगा ही नहीं तो नाई कैसे उसके बाल काटेगा?”

व्यक्ति ने कहा – “तुम बिल्कुल सही कह रहे हो, यही बात है| भगवान भी होते है लेकिन कुछ लोग भगवान पर विश्वास ही नहीं करते तो भगवान उनकी मदद कैसे करेंगे|”

Moral of Hindi Story :
विश्वास ही सत्य है| अगर भगवान पर विश्वास करते है तो हमें हर पल उनकी अनुभूति होती है और अगर हम विश्वास नहीं करते तो हमारे लिए उनका कोई अस्तित्व नहीं |

सीखना बंद तो जीतना बंद……

‘कौन बनेगा करोरपति’ के हर परमोशन में अमिताभ बच्चन जी एक कमाल का वाक्य  बोलते हैं कि ‘सीखना बंद तो जीतना बंद’ कितने  सरल तरीके से सबसे बड़े सवाल का जवाब दे दिया अमिताभ बच्चन जी ने. हर युग में, दुनिया के हर कोने में, हर इन्सान ये ही जानना चाहता है कि वो कैसे जीत सकता है? कैसे कामयाब हो सकता है? जी हाँ! ये ही जवाब है, ये ही सच्चाई है जब हम सीखना बंद कर देते है तो अपनी कामयाबी से दूर होने लगते है……
जीत या कामयाबी  एक नशा है, एक आदत है, एक जूनून है. जब तक यह नशा रहता है हम अपनी जीत के लिय, कामयाबी के लिय सब कुछ करना चाहते हैं. इस के लिय सब कुछ जानना, सीखना चाहते है, सब कुछ. और जैसे-जैसे यह नशा उतरने लगता है, जीतने का जूनून कम होने लगता है हम सीखना बंद कर देते है और हमारी  ग्रोथ वहीँ के वहीँ रुक जाती है……
इस दुनिया में हम बहुत कामयाब और खुशहाल लोगो को देखते है और सोचते है कि काश! हम भी उनकी तरह होते हमारी किस्मत भी ऊपर वाले ने उन लोगो की जैसी बनाई होती. और अपनी नाकामयाबी के लिय खुदा से लेकर हर किसी को दोष दे रहे होते हैं….लेकिम जब हम बदकिस्मती का रोना रो रहे होते है तो हम यह भूल जाते है कि उसमे हमारे परिश्रम और काबलियत के अभाव का कितना हिस्सा है?……
मगर इतनी सी बात को समझना नहीं चाहते कि अपने-अपने क्षेत्र में जो जितना ट्रेंड है वो उतना ही कामयाब है. सबसे ट्रेंड सबसे कामयाब यानि सबसे अव्वल, कम ट्रेंड कम कामयाब और सबसे कम ट्रेंड सबसे कम सफल यानि सबसे पीछे……
आप आज जो कुछ भी है, लो कुछ आप कर सकते है उसकी आपको जाने अनजाने ट्रेनिंग मिली है  जैसे-जो भाषा आप बोलते है उस भाषा को आपको सिखाया गया है, आप को चलना, खाना खाना, उठाना-बैठना, बात करना सबकुछ की आपको ट्रेनिंग मिली है, सोचिये अगर आपके पैरेंट्स ने आपको बिना कुछ सिखाये ऐसे ही छोड़ दिया होता तो आज आप की हालत क्या हो सकती थी. बचपन से लेकर आज तक आपको जैसी ट्रेनिंग मिली आप वैसे ही बन गए. अच्छी ट्रेनिंग अच्छे इन्सान, बहुत अच्छी ट्रेनिंग बहुत अच्छे इन्सान….
दोस्तों कामयाब(अमीर) लोग लगातार सीखते है खुद को विकसित करते हैं नाकामयाब (गरीब) लोग सोचते हैं उन्हें सब कुछ आता है….इस दुनिया का सबसे ख़राब वाक्य “ मैं सब कुछ जनता हूँ.”  “I KNOW EVERY THING” है. 3 इडियट फिल्म में आमिर खान कहते है ‘काबिल बनो कामयाबी झक मारकर पीछे-पीछे आ जायगी’. कामयाब लोग सेमिनार में जाते है, लेक्चर सुनते है, वर्कशॉप अटेंड करते है, वो सीखने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते. अपने बिजनेस या फील्ड के अपडेट्स बराबर लेते रहते है. इसीलीय अमीर लोग ज्यादा धन कमाते है क्योंकि वो ज्यादा ट्रेंड होते है.
दोस्तों आपकी आय उसी हद तक बढ़ सकती है जिस हद तक आप बढ़ सकते हैं यानि आप जितना ज्यादा सीखेंगे उतना ज्यादा कामयाब होंगे. सचिन तेन्दुलकर को क्रिकेट का भगवान इसलिय कहा जाता है क्योंकि वो हर तरह की बौल को चार तरह से खेल सकते है. “कामयाब लोग धनवान बनने के लिय समर्पित होते है जबकि गरीब यानि नाकामयाब लोग धनवान बनना चाहते है’.
जिस तरह एक पौधा अगर बढ़ नहीं रहा होता है तो वो मर रहा होता है उसी तरह अगर आप बढ़ नहीं रहे हैं तो आप मर रहे हैं, अगर आप जीत नहीं रहे हैं तो आप हार रहे हैं
यानि आपकी सफलता आपसे दूर जा रही है… मतलब सीखना बंद तो जीतना बंद.

Heaven – स्वर्ग

एक यात्री अपने घोड़े और कुत्ते के साथ सड़क पर चल रहा था. जब वे एक विशालकाय पेड़ के पास से गुज़र रहे थे तब उनपर आसमान से बिजली गिरी और वे तीनों तत्क्षण मर गए. लेकिन उन तीनों को यह प्रतीत नहीं हुआ कि वे अब जीवित नहीं है और वे चलते ही रहे. कभी-कभी मृत प्राणियों को अपना शरीरभाव छोड़ने में समय लग जाता है.
उनकी यात्रा बहुत लंबी थी. आसमान में सूरज ज़ोरों से चमक रहा था. वे पसीने से तरबतर और बेहद प्यासे थे. वे पानी की तलाश करते रहे. सड़क के मोड़ पर उन्हें एक भव्य द्वार दिखाई दिया जो पूरा संगमरमर का बना हुआ था. द्वार से होते हुए वे स्वर्ण मढ़ित एक अहाते में आ पहुंचे. अहाते के बीचोंबीच एक फव्वारे से आईने की तरह साफ़ पानी निकल रहा था.
यात्री ने द्वार की पहरेदारी करनेवाले से कहा:
“नमस्ते, यह सुन्दर जगह क्या है?
“यह स्वर्ग है”.


 “कितना अच्छा हुआ कि हम चलते-चलते स्वर्ग आ पहुंचे. हमें बहुत प्यास लगी है.”
“तुम चाहे जितना पानी पी सकते हो”.
“मेरा घोड़ा और कुत्ता भी प्यासे हैं”.
“माफ़ करना लेकिन यहाँ जानवरों को पानी पिलाना मना है”
यात्री को यह सुनकर बहुत निराशा हुई. वह खुद बहुत प्यासा था लेकिन अकेला पानी नहीं पीना चाहता था. उसने पहरेदार को धन्यवाद दिया और अपनी राह चल पड़ा. आगे और बहुत दूर तक चलने के बाद वे एक बगीचे तक पहुंचे जिसका दरवाज़ा जर्जर था और भीतर जाने का रास्ता धूल से पटा हुआ था.
भीतर पहुँचने पर उसने देखा कि एक पेड़ की छाँव में एक आदमी अपने सर को टोपी से ढंककर सो रहा था.
“नमस्ते” – यात्री ने उस आदमी से कहा – “मैं, मेरा घोड़ा और कुत्ता बहुत प्यासे हैं. क्या यहाँ पानी मिलेगा?”
उस आदमी ने एक ओर इशारा करके कहा – “वहां चट्टानों के बीच पानी का एक सोता है. जाओ जाकर पानी पी लो.”
यात्री अपने घोड़े और कुत्ते के साथ वहां पहुंचा और तीनों ने जी भर के अपनी प्यास बुझाई. फिर यात्री उस आदमी को धन्यवाद कहने के लिए आ गया.
“यह कौन सी जगह है?”
“यह स्वर्ग है”.
“स्वर्ग? इसी रास्ते में पीछे हमें एक संगमरमरी अहाता मिला, उसे भी वहां का पहरेदार स्वर्ग बता रहा था!”
“नहीं-नहीं, वह स्वर्ग नहीं है. वह नर्क है”.
यात्री अब अपना आपा खो बैठा. उसने कहा – “भगवान के लिए ये सब कहना बंद करो! मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है कि यह सब क्या है!”
आदमी ने मुस्कुराते हुए कहा – “नाराज़ न हो भाई, संगमरमरी स्वर्ग वालों का तो हमपर बड़ा उपकार है. वहां वे सभी लोग रुक जाते हैं जो अपने भले के लिए अपने सबसे अच्छे दोस्तों को भी छोड़ सकते हैं.”
(यह कहानी पाउलो कोएलो की किताब “The Devil and Miss Prym” से ली गयी है. A story on friendship by Paulo Coelho – in Hindi)

मार्केट में पैसा कैसे डूबता है….इस कहानी के जरिये समझिए


एक बार एक आदमी ने गांववालों से कहा की वो 100रु .में एक बन्दर खरीदेगा , ये सुनकर सभी गांव वाले
नजदीकी जंगल की और दौड़ पड़े और वहां से बन्दर पकड़ पकड़ कर 100 रु .में उस आदमी को बेचने लगे …….
कुछ दिन बाद ये सिलसिला कम हो गया और लोगों की इस बात में दिलचस्पी कम हो गयी …….


फिर उस आदमी ने कहा की वो एक एक बन्दर के लिए 200 रु .देगा , ये सुनकर लोग फिर बन्दर पकड़ने में लग गये, लेकिन कुछ दिन बाद मामला फिर ठंडा हो गया ….


अब उस आदमी ने कहा की वो बंदरों के लिए 500 रु देगा , लेकिन क्यूंकि उसे शहर जाना था उसने इस काम
के लिए एक असिस्टेंट नियुक्त कर दिया …….. 


500 रु सुनकर गांव वाले बदहवास हो गए ,लेकिन पहले ही लगभग सारे बन्दर पकडे जा चुके थे
इसलिए उन्हें कोई हाथ नही लगा …… 


तब उस आदमी का असिस्टेंट उनसे आकर कहता है ….. ” आप लोग चाहें तो सर के पिंजरे में से 400 – 400 रु . में बन्दर खरीद सकते हैं , जब सर आ जाएँ तो 500 -500 में बेच दीजियेगा “…

गांव वालों को ये प्रस्ताव भा गया और उन्होंने सारे बन्दर 400 – 400 रु .में खरीद लिए …..


अगले दिन न वहां कोई असिस्टेंट था और न ही कोई सर ……. बस बन्दर ही बन्दर….

संघर्ष और चुनोतियो के बिना व्यक्ति खोखला है

एक बार एक किसान परमात्मा से बड़ा नाराज हो गया ! कभी बाढ़ आ जाये, कभी सूखा पड़ जाए, कभी धूप बहुत तेज हो जाए तो कभी ओले पड़ जाये! हर बार कुछ ना कुछ कारण से उसकी फसल थोड़ी ख़राब हो जाये! एक दिन बड़ा तंग आ कर उसने परमात्मा से कहा ,देखिये प्रभु,आप परमात्मा हैं , लेकिन लगता है आपको खेती बाड़ी की ज्यादा जानकारी नहीं है ,एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे मौका दीजिये , जैसा मै चाहू वैसा मौसम हो,फिर आप देखना मै कैसे अन्न के भण्डार भर दूंगा! परमात्मा मुस्कुराये और कहा ठीक है, जैसा तुम कहोगे वैसा ही मौसम दूंगा, मै दखल नहीं करूँगा!

किसान ने गेहूं की फ़सल बोई ,जब धूप चाही ,तब धूप मिली, जब पानी तब पानी ! तेज धूप, ओले,बाढ़ ,आंधी तो उसने आने ही नहीं दी, समय के साथ फसल बढ़ी और किसान की ख़ुशी भी,क्योंकि ऐसी फसल तो आज तक नहीं हुई थी ! किसान ने मन ही मन सोचा अब पता चलेगा परमात्मा को, की फ़सल कैसे करते हैं ,बेकार ही इतने बरस हम किसानो को परेशान करते रहे.


फ़सल काटने का समय भी आया ,किसान बड़े गर्व से फ़सल काटने गया, लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा ,एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया! गेहूं की एक भी बाली के अन्दर गेहूं नहीं था ,सारी बालियाँ अन्दर से खाली थी, बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से कहा ,प्रभु ये क्या हुआ ?


तब परमात्मा बोले,” ये तो होना ही था ,तुमने पौधों को संघर्ष का ज़रा सा भी मौका नहीं दिया . ना तेज धूप में उनको तपने दिया , ना आंधी ओलों से जूझने दिया ,उनको किसी प्रकार की चुनौती का अहसास जरा भी नहीं होने दिया , इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए, जब आंधी आती है, तेज बारिश होती है ओले गिरते हैं तब पोधा अपने बल से ही खड़ा रहता है, वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है वोही उसे शक्ति देता है ,उर्जा देता है, उसकी जीवटता को उभारता है.सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने , हथौड़ी से पिटने,गलने जैसी चुनोतियो से गुजरना पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है,उसे अनमोल बनाती है !”


उसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष ना हो ,चुनौती ना हो तो आदमी खोखला ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण नहीं आ पाता ! ये चुनोतियाँ ही हैं जो आदमी रूपी तलवार को धार देती हैं ,उसे सशक्त और प्रखर बनाती हैं, अगर प्रतिभाशाली बनना है तो चुनोतियाँ तो स्वीकार करनी ही पड़ेंगी, अन्यथा हम खोखले ही रह जायेंगे. अगर जिंदगी में प्रखर बनना है,प्रतिभाशाली बनना है ,तो संघर्ष और चुनोतियो का सामना तो करना ही पड़ेगा .....

चार मोमबत्तियां

रात का समय था, चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था , नज़दीक ही एक कमरे में चार मोमबत्तियां जल रही थीं। एकांत पा कर आज वे एक दुसरे से दिल की बात कर रही थीं।

पहली मोमबत्ती बोली, ” मैं शांति हूँ , पर मुझे लगता है अब इस दुनिया को मेरी ज़रुरत नहीं है , हर तरफ आपाधापी और लूट-मार मची हुई है, मैं यहाँ अब और नहीं रह सकती। …” और ऐसा कहते हुए , कुछ देर में वो मोमबत्ती बुझ गयी।

दूसरी मोमबत्ती बोली , ” मैं विश्वास हूँ , और मुझे लगता है झूठ और फरेब के बीच मेरी भी यहाँ कोई ज़रुरत नहीं है , मैं भी यहाँ से जा रही हूँ …” , और दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी।

तीसरी मोमबत्ती भी दुखी होते हुए बोली , ” मैं प्रेम हूँ, मेरे पास जलते रहने की ताकत है, पर आज हर कोई इतना व्यस्त है कि मेरे लिए किसी के पास वक्त ही नहीं, दूसरों से तो दूर लोग अपनों से भी प्रेम करना भूलते जा रहे हैं ,मैं ये सब और नहीं सह सकती मैं भी इस दुनिया से जा रही हूँ….” और ऐसा कहते हुए तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी।

वो अभी बुझी ही थी कि एक मासूम बच्चा उस कमरे में दाखिल हुआ।
मोमबत्तियों को बुझे देख वह घबरा गया , उसकी आँखों से आंसू टपकने लगे और वह रुंआसा होते हुए बोला ,
“अरे , तुम मोमबत्तियां जल क्यों नहीं रही , तुम्हे तो अंत तक जलना है ! तुम इस तरह बीच में हमें कैसे छोड़ के जा सकती हो ?”

तभी चौथी मोमबत्ती बोली , ” प्यारे बच्चे घबराओ नहीं, मैं आशा हूँ और जब तक मैं जल रही हूँ हम बाकी मोमबत्तियों को फिर से जला सकते हैं। “
यह सुन बच्चे की आँखें चमक उठीं, और उसने आशा के बल पे शांति, विश्वास, और प्रेम को फिर से प्रकाशित कर दिया।

मित्रों , जब सबकुछ बुरा होते दिखे ,चारों तरफ अन्धकार ही अन्धकार नज़र आये , अपने भी पराये लगने लगें तो भी उम्मीद मत छोड़िये….आशा मत छोड़िये , क्योंकि इसमें इतनी शक्ति है कि ये हर खोई हुई चीज आपको वापस दिल सकती है। अपनी आशा की मोमबत्ती को जलाये रखिये ,बस अगर ये जलती रहेगी तो आप किसी भी और मोमबत्ती को प्रकाशित कर सकते हैं।

खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप

दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो .
खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है .
शक्ति जीवन है , निर्बलता मृत्यु है . विस्तार जीवन है , संकुचन मृत्यु है . प्रेम जीवन है , द्वेष मृत्यु है .
एक समय में एक काम करो , और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ .
भला हम भगवान को खोजने कहाँ जा सकते हैं अगर उसे अपने ह्रदय और हर एक जीवित प्राणी में नहीं देख सकते .
उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये.
उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो , तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो , तुम तत्व नहीं हो , ना ही शरीर हो , तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो.
ब्रह्माण्ड कि सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं. वो हमीं हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है!
जिस तरह से विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न धाराएँ अपना जल समुद्र में मिला देती हैं ,उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है.
एक शब्द में, यह आदर्श है कि तुम परमात्मा हो.
उस व्यक्ति ने अमरत्त्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता.
हम जितना ज्यादा बाहर जायें और दूसरों का भला करें, हमारा ह्रदय उतना ही शुद्ध होगा , और परमात्मा उसमे बसेंगे.
बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है .
भगवान् की एक परम प्रिय के रूप में पूजा की जानी चाहिए , इस या अगले जीवन की सभी चीजों से बढ़कर .
यदि स्वयं में विश्वास करना और अधिक विस्तार से पढाया और अभ्यास कराया गया होता , तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता .
वेदान्त कोई पाप नहीं जानता , वो केवल त्रुटी जानता है . और वेदान्त कहता है कि सबसे बड़ी त्रुटी यह कहना है कि तुम कमजोर हो , तुम पापी हो , एक तुच्छ प्राणी हो , और तुम्हारे पास कोई शक्ति नहीं है और तुम ये वो नहीं कर सकते .
जब कोई विचार अनन्य रूप से मस्तिष्क पर अधिकार कर लेता है तब वह वास्तविक भौतिक या मानसिक अवस्था में परिवर्तित हो जाता है .
किसी दिन , जब आपके सामने कोई समस्या ना आये – आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं .
किसी चीज से डरो मत . तुम अद्भुत काम करोगे . यह निर्भयता ही है जो क्षण भर में परम आनंद लाती है .
सबसे बड़ा धर्म है अपने स्वभाव के प्रति सच्चे होना . स्वयं पर विश्वास करो .
मस्तिष्क की शक्तियां सूर्य की किरणों के समान हैं . जब वो केन्द्रित होती हैं ; चमक उठती हैं .
आकांक्षा , अज्ञानता , और असमानता – यह बंधन की त्रिमूर्तियां हैं .
श्री रामकृष्ण कहा करते थे ,” जब तक मैं जीवित हूँ , तब तक मैं सीखता हूँ ”. वह व्यक्ति या वह समाज जिसके पास सीखने को कुछ नहीं है वह पहले से ही मौत के जबड़े में है .

ये 7 बातें हमेशा गुप्त रखनी चाहिए:


1. अपमान
यदि किसी वजह से हमें अपमान का सामना करना पड़ा हो तो इस बात को गुप्त रखना फायदेमंद होता है। यदि दूसरों को यह मालूम होगा की हमें अपमान का सामना करना पड़ा है तो लोग हमारा मजाक बना सकते हैं।
2. धन हानि
आज के समय में धन को किसी भी व्यक्ति की शक्ति का पैमाना माना जाता है। अधिकांश परिस्थितियों में धन के आधार पर ही रिश्ते निभाए जाते हैं और मित्रता की जाती है। अत: यदि हमें कभी भी धन हानि का सामना करना पड़े तो इस बात को गुप्त रखना चाहिए। धन हानि की बात दूसरों को बता दी जाएगी तो कई लोग हमसे दूरियां बढ़ा लेंगे। धन हानि से उबरने के लिए धन की आवश्यकता होती है, इस बात के जाहिर होने पर कोई धन की मदद भी नहीं करेगा। साथ ही, यदि हमारे पास बहुत सारा धन है तो इस बात को भी गुप्त रखना चाहिए।
3. घर-परिवार के झगड़े
अधिकांश परिवारों में वाद-विवाद होते रहते हैं, ये बहुत ही आम बात है, लेकिन आपसी झगड़े घर के बाहर किसी को भी नहीं बताने चाहिए। ऐसा करने पर समाज में परिवार की प्रतिष्ठा कम होती है। परिवार का अहित चाहने वाले लोग हमारे आपसी झगड़े से लाभ उठा सकते हैं।
4. मंत्र
गुरु द्वारा दिए गए मंत्र को गुप्त रखनी चाहिए। गुरु मंत्र, तब ही सिद्ध होते हैं, जब इन्हें गुप्त रखा जाता है। मंत्रों को गुप्त रखने पर जल्दी ही शुभ फल प्राप्त होते हैं।
5. दान
गुप्त दान का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग गुप्त रूप से दान करते हैं, उन्हें अक्षय पुण्य के साथ ही देवी-देवताओं की कृपा से सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं। दूसरों को बता-बताकर दान करने पर पुण्य प्राप्त नहीं हो पाता है।
6. पद-प्रतिष्ठा
यदि हम किसी बड़े पद पर हैं और समाज में हमें बहुत मान-सम्मान प्राप्त होता है तो इस बात को भी गुप्त रखना चाहिए। किसी अन्य व्यक्ति के सामने इस बात को जाहिर करेंगे तो इससे अहंकार का भाव पैदा होता है। अहंकार पतन का कारण बनता है और इससे हमारी प्रतिष्ठा कम हो सकती है।
7. रतिक्रिया
स्त्री-पुरुष को रतिक्रिया के समय एकांत का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस कर्म से जुड़ी बातें भी गुप्त रखनी चाहिए। यदि ये बातें दूसरों को मालूम हो जाती हैं तो यह हमारे चरित्र और सामाजिक जीवन के लिए अच्छा नहीं होता है।
Source : Internet

महात्मा जी की बिल्ली

एक बार एक महात्माजी अपने कुछ शिष्यों के साथ जंगल में आश्रम बनाकर रहते थें, एक दिन कहीं से एक बिल्ली का बच्चा रास्ता भटककर आश्रम में आ गया । महात्माजी ने उस भूखे प्यासे बिल्ली के बच्चे को दूध-रोटी खिलाया । वह बच्चा वहीं आश्रम में रहकर पलने लगा। लेकिन उसके आने के बाद महात्माजी को एक समस्या उत्पन्न हो गयी कि जब वे सायं ध्यान में बैठते तो वह बच्चा कभी उनकी गोद में चढ़ जाता, कभी कन्धे या सिर पर बैठ जाता । तो महात्माजी ने अपने एक शिष्य को बुलाकर कहा देखो मैं जब सायं ध्यान पर बैठू, उससे पूर्व तुम इस बच्चे को दूर एक पेड़ से बॉध आया करो। अब तो यह नियम हो गया, महात्माजी के ध्यान पर बैठने से पूर्व वह बिल्ली का बच्चा पेड़ से बॉधा जाने लगा । एक दिन महात्माजी की मृत्यु हो गयी तो उनका एक प्रिय काबिल शिष्य उनकी गद्दी पर बैठा । वह भी जब ध्यान पर बैठता तो उससे पूर्व बिल्ली का बच्चा पेड़ पर बॉधा जाता । फिर एक दिन तो अनर्थ हो गया, बहुत बड़ी समस्या आ खड़ी हुयी कि बिल्ली ही खत्म हो गयी। सारे शिष्यों की मीटिंग हुयी, सबने विचार विमर्श किया कि बड़े महात्माजी जब तक बिल्ली पेड़ से न बॉधी जाये, तब तक ध्यान पर नहीं बैठते थे। अत: पास के गॉवों से कहीं से भी एक बिल्ली लायी जाये। आखिरकार काफी ढॅूढने के बाद एक बिल्ली मिली, जिसे पेड़ पर बॉधने के बाद महात्माजी ध्यान पर बैठे।
विश्वास मानें, उसके बाद जाने कितनी बिल्लियॉ मर चुकी और न जाने कितने महात्माजी मर चुके। लेकिन आज भी जब तक पेड़ पर बिल्ली न बॉधी जाये, तब तक महात्माजी ध्यान पर नहीं बैठते हैं। कभी उनसे पूछो तो कहते हैं यह तो परम्परा है। हमारे पुराने सारे गुरुजी करते रहे, वे सब गलत तो नहीं हो सकते । कुछ भी हो जाये हम अपनी परम्परा नहीं छोड़ सकते।
यह तो हुयी उन महात्माजी और उनके शिष्यों की बात । पर कहीं न कहीं हम सबने भी एक नहीं; अनेकों ऐसी बिल्लियॉ पाल रखी हैं । कभी गौर किया है इन बिल्लियों पर ?सैकड़ों वर्षो से हम सब ऐसे ही और कुछ अनजाने तथा कुछ चन्द स्वार्थी तत्वों द्वारा निर्मित परम्पराओं के जाल में जकड़े हुए हैं।
ज़रुरत इस बात की है कि हम ऐसी परम्पराओं और अॅधविश्वासों को अब और ना पनपने दें , और अगली बार ऐसी किसी चीज पर यकीन करने से पहले सोच लें की कहीं हम जाने – अनजाने कोई अन्धविश्वास रुपी बिल्ली तो नहीं पाल रहे ?

नोटों पर कहां से आई गांधी जी की तस्वीर









(फोटो: कोलकाता स्थित वायसराय हाउस में फ्रेडरिक पेथिक लॉरेंस के साथ गांधीजी (ऊपर) और भारतीय नोट)

नई दिल्ली. सरकार के मुताबिक, इस साल के अंत से देसी कागज पर छपे नोटों की बिक्री शुरू हो जाएगी। वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने हाल ही में लोकसभा में कहा था कि अब तक सभी नोटों की छपाई विदेशों से आयातित कागज पर होती है जबकि स्याही भारत में ही बनती है, इसलिए अब सरकार देसी कागज पर ही नोटों की छपाई शुरू करेगी।
 
देसी कागज के नोट पर भी होंगे गांधी जी
भारतीय करंसी पर फिलहाल गांधीजी की तस्वीर अंकित है। देसी कागज पर छपने वाला नोटों पर भी ये ही तस्वीर अंकित होगी। ये हमारी करंसी का ट्रेडमार्क भी है। लेकिन, सवाल यह उठता है कि गांधीजी की यह तस्वीर कहां से आई, जो ऐतिहासिक और हिंदुस्तान की करंसी का ट्रेडमार्क बन गई। दरअसल यह सिर्फ पोट्रेट फोटो नहीं, बल्कि गांधीजी की संलग्न तस्वीर है। इसी तस्वीर से गांधीजी का चेहरा पोट्रेट के रूप में लिया गया।

कहां की है यह तस्वीर
यह तस्वीर उस समय खींची गई, जब गांधीजी ने तत्कालीन बर्मा और भारत में ब्रिटिश सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत फ्रेडरिक पेथिक लॉरेंस के साथ कोलकाता स्थित वायसराय हाउस मेंमुलाकात की थी। इसी तस्वीर से गांधीजी का चेहरा पोट्रेट के रूप में भारतीय नोटों पर अंकित किया गया।
Source : moneybhaskar.com

एक नास्तिक की भक्ति..........

हरिराम नामक आदमी शहर के एक छोटी सी गली में रहता था। वह एक दवाखाने का मालिक था।
सारी दवाइयों की उसे अच्छी जानकारी थी। दस सालका अनुभव होने के कारण उसे अच्छी तरह पता था कि कौन सी दवाई कहाँ रखी है। वह इस पेशे को बड़े ही शौक से बहुत ही निष्ठा से करता था।दिन-ब-दिन उसके दुकान में सदैव भीड़ लगी रहती थी। वह ग्राहकों को वांछित दवाइयों को सावधानी और इत्मीनान होकर देता था।
पर उसे भगवान पर कोई भरोसा नहीं था वह एक नास्तिक था। भगवान के नाम से ही वह चिढ़ने लगता था। घरवालों उसे बहुत समझाते पर वह उनकी एक न सुनता था। खाली वक्त मिलने पर वह अपने दोस्तों के संग मिलकर, घर या दुकान में ताश खेलता था। एक दिन उसके दोस्त उसका हालचाल पूछने दुकान में आए अचानक बहुत जोर से बारिश होने लगी। बारिश की वजह से दुकान में भी कोई नहीं था। बस फिर क्या, सब दोस्त मिलकर ताश खेलने लगे। एक छोटा लड़का उसके दूकान में दवाई लेने पर्चा लेकर आया। उसका पूरा शरीर भीगा था। हरिराम ताश खेलने में इतना मशगूल था कि बारिश में आए हुए उस लड़के पर उसकी नजर नहीं पड़ी। ठंड़ से ठिठुरते हुए उस लड़के ने दवाई का पर्चा बढ़ाते हुए कहा- “साहब जी मुझे ये दवाइयाँ चाहिए, मेरी माँ बहुत बीमार है, उनको बचा लीजिए. बाहर और सब दुकानें बारिश की वजह से बंद है। आपके दुकान को देखकर मुझे विश्वास हो गया कि मेरी माँ बच जाएगी। यह दवाई उनके लिए बहुत जरूरी है। इस बीच लाइट भी चली गई और सब दोस्त जाने लगे। बारिश भी थोड़ा थम चुका था।

“ उस लड़के की पुकार सुनकर ताश खेलते-खेलते ही हरिराम ने दवाई के उस पर्चे को हाथ में लिया और दवाई लेने को उठा ताश के खेल को पूरा न कर पाने के कारण अनमने से अपने अनुभव से अंधेरे में ही दवाई की उस शीशी को झट से निकाल कर उसने लड़के को दे दिया। उस लड़के ने दवाई का दाम पूछा और उचित दाम देकर बाकी के पैसे भी अपनी जेब में रख लिया। लड़का खुशी-खुशी दवाई की शीशी लेकर चला गया। वह आज दूकान को जल्दी बंद करने की सोच रहा था।थोड़ी देर बाद लाइट आ गई और वह यह देखकर दंग रह गया कि उसने दवाई की शीशी बदल कर दे दी है।

जो दवाई उसने वह लड़के को दिया था, वह चूहे मारने वाली जहरीली दवा है जिसे उसके किसी ग्राहक ने थोड़ी ही देर पहले लौटाया था और ताश खेलने की धुन में उसे अन्य दवाइयों के बीच यह सोच कर रख दिया था कि ताश की बाजी के बाद फिर उसे अपनी जगह वापस रख देगा। अब उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसकी दस साल की नेकी पर मानो जैसे ग्रहण लग गया। उस लड़के बारे में वह सोच कर तड़पने लगा। सोचा यदि यह दवाई उसने अपनी बीमार माँ को देगा, तो वह अवश्य मर जाएगी। लड़का भी बहुत छोटा होने के कारण उस दवाई को तो पढ़ना भी नहीं जानता होगा।

एक पल वह अपनी इस भूल को कोसने लगा और ताश खेलने की अपनी आदत को छोड़ने का निश्चय कर लिया पर यह बात तो बाद के बाद देखा जाएगा। अब क्या किया जाए? उस लड़के का पता ठिकाना भी तो वह
नहीं जानता। कैसे उस बीमार माँ को बचाया जाए? सच कितना विश्वास था उस लड़के की आंखों में। हरिराम
को कुछ सूझ नहीं रहा था। घर जाने की उसकी इच्छा अब ठंडी पड़ गई। दुविधा और बेचैनी उसे घेरे हुए था। घबराहट में वह इधर-उधर देखने लगा। पहली बार उसकी दृष्टि दीवार के उस कोने में पड़ी, जहाँ उसके
पिता ने जिद्द करके भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर दुकान के उद्घाटन के वक्त लगाया था। पिता से हुई बहस में एक दिन उन्होंने हरिराम से भगवान को कम से कम एक शक्ति के रूप मानने और पूजने की मिन्नत की थी।
उन्होंने कहा था कि भगवान की भक्ति में बड़ी शक्ति होती है, वह हर जगह व्याप्त है और हमें सदैव हर कार्य करने की प्रेरणा देता है। हरिराम यह सारी बात याद आने लगी। आज उसने इस अद्भुत शक्ति को आज़माना चाहा। उसने कई बार अपने पिता को भगवान की तस्वीर के सामने कर जोड़कर, आंखें बंद करते हुए पूजते देखा था। उसने भी आज पहली बार कमरे के कोने में रखी उस धूल भरे कृष्ण की तस्वीर को देखा और आंखें बंद कर दोनों हाथों को जोड़कर वहीं खड़ा हो गया। थोड़ी देर बाद वह छोटे लड़का फिर दुकान में आया। हरिराम के पसीने छूटने लगे। वह बहुत अधीर हो उठा। पसीने को पोंछते हुए उसने कहा- क्या बात है! बेटे! तुम्हें
क्या चाहिए? लड़के की आंखों से पानी छलकने लगा। उसने रुकते-रुकते कहा- बाबूजी! बाबूजी! माँ को बचाने के लिए मैं दवाई की शीशी लिए भागे जा रहा था, घर के करीब पहुँचभी गया था, बारिश की वजह से ऑंगन में पानी भरा था और मैं फिसल गया। दवाई की शीशी गिर कर टूट गई। क्या आप मुझे वही दवाई की दूसरी शीशी दे सकते हैं? बाबूजी? लड़के ने उदास होकरपूछा।
हाँ! हाँ ! क्यों नहीं?
हरिराम ने राहत की साँस लेते हुए कहा। लो, यह दवाई!  और हरिराम उस दवाई की नई शीशी उसे थमाते हुए कहा। पर! पर!
मेरे पास तो पैसे नहीं है, उस लड़के ने हिचकिचाते हुए बड़े भोलेपन से कहा।
हरिराम को उस बिचारे पर दया आई।
कोई बात नहीं- तुम यह दवाई ले जाओ और अपनी माँ को बचाओ। जाओ जल्दी करो, और हाँ अब
की बार ज़रा संभल के जाना।
लड़का, अच्छा बाबूजी!
कहता हुआ खुशी से चल पड़ा।
अब हरिराम को जान में जान आई।
# भगवान को धन्यवाद देता हुआ अपने हाथों से उस धूल भरे तस्वीर को लेकर अपनी धोती से पोंछने
लगा और अपने सीने से लगा लिया। अपने भीतर हुए इस परिवर्तन को वह पहले अपने घरवालों को सुनाना चाहता था। जल्दी दुकान को बंद करके वह घर को रवाना हुआ।उसके नास्तिकता की घोर अंधेरी रात भी अब बीत गई थी और अगले दिन की नई सुबह एक नए हरिराम की प्रतीक्षा कर रही थी।....

यह संसार क्या है?

एक नगर में एक शीशमहल था। महल की हरेक दीवार पर सैकड़ों शीशे जडे़ हुए थे।
एक दिन एक गुस्सैल कुत्ता महल में घुस गया।
महल के भीतर उसे सैकड़ों कुत्ते दिखे, जो नाराज और दुखी लग रहे थे।
उन्हें देखकर वह उन पर भौंकने लगा। उसे सैकड़ों कुत्ते अपने ऊपर भौंकते दिखने लगे।
वह डरकर वहां से भाग गया कुछ दूर जाकर उसने मन ही मन सोचा कि
इससे बुरी कोई जगह नहीं हो सकती।
कुछ दिनों बाद एक अन्य कुत्ता शीशमहल पहुंचा।
वह खुशमिजाज और जिंदादिल था।
महल में घुसते ही उसे वहां सैकड़ों कुत्ते दुम हिलाकर स्वागत करते दिखे।
उसका आत्मविश्वास बढ़ा और उसने खुश होकर सामने देखा
तो उसे सैकड़ों कुत्ते खुशी जताते हुए नजर आए।
उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। जब वह महल से बाहर आया तो
उसने महल को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ स्थान और वहां के अनुभव को
अपने जीवन का सबसे बढ़िया अनुभव माना।
वहां फिर से आने के संकल्प के साथ वह वहां से रवाना हुआ।'
कथा समाप्त कर गुरु ने शिष्य से कहा..
'संसार भी ऐसा ही शीशमहल है
जिसमें व्यक्ति अपने विचारों के अनुरूप ही प्रतिक्रिया पाता है।
जो लोग संसार को आनंद का बाजार मानते हैं,
वे यहां से हर प्रकार के सुख और आनंद के अनुभव लेकर जाते हैं।
जो लोग इसे दुखों का कारागार समझते हैं
उनकी झोली में दुख और कटुता के सिवाय कुछ नहीं बचता।

गुरुवर कृपा

एक राजा था. उसे पढने लिखने का बहुत शौक था. एक बार उसने मंत्री-परिषद् के माध्यम से अपने लिए एक शिक्षक की व्यवस्था की. शिक्षक राजा को पढ़ाने के लिए आने लगा. राजा को शिक्षा ग्रहण करते हुए कई महीने बीत गए, मगर राजा को कोई लाभ नहीं हुआ. गुरु तो रोज खूब मेहनत करता थे परन्तु राजा को उस शिक्षा का कोई फ़ायदा नहीं हो रहा था. राजा बड़ा परेशान, गुरु की प्रतिभा और योग्यता पर सवाल उठाना भी गलत था क्योंकि वो एक बहुत ही प्रसिद्द और योग्य गुरु थे. आखिर में एक दिन रानी ने राजा को सलाह दी कि राजन आप इस सवाल का जवाब गुरु जी से ही पूछ कर देखिये.
राजा ने एक दिन हिम्मत करके गुरूजी के सामने अपनी जिज्ञासा रखी, ” हे गुरुवर , क्षमा कीजियेगा , मैं कई महीनो से आपसे शिक्षा ग्रहण कर रहा हूँ पर मुझे इसका कोई लाभ नहीं हो रहा है. ऐसा क्यों है ?”
गुरु जी ने बड़े ही शांत स्वर में जवाब दिया, ” राजन इसका कारण बहुत ही सीधा सा है…”
” गुरुवर कृपा कर के आप शीघ्र इस प्रश्न का उत्तर दीजिये “, राजा ने विनती की.
गुरूजी ने कहा, “राजन बात बहुत छोटी है परन्तु आप अपने ‘बड़े’ होने के अहंकार के कारण इसे समझ नहीं पा रहे हैं और परेशान और दुखी हैं. माना कि आप एक बहुत बड़े राजा हैं. आप हर दृष्टि से मुझ से पद और प्रतिष्ठा में बड़े हैं परन्तु यहाँ पर आप का और मेरा रिश्ता एक गुरु और शिष्य का है. गुरु होने के नाते मेरा स्थान आपसे उच्च होना चाहिए, परन्तु आप स्वंय ऊँचे सिंहासन पर बैठते हैं और मुझे अपने से नीचे के आसन पर बैठाते हैं. बस यही एक कारण है जिससे आपको न तो कोई शिक्षा प्राप्त हो रही है और न ही कोई ज्ञान मिल रहा है. आपके राजा होने के कारण मैं आप से यह बात नहीं कह पा रहा था.
कल से अगर आप मुझे ऊँचे आसन पर बैठाएं और स्वंय नीचे बैठें तो कोई कारण नहीं कि आप शिक्षा प्राप्त न कर पायें.”
राजा की समझ में सारी बात आ गई और उसने तुरंत अपनी गलती को स्वीकारा और गुरुवर से उच्च शिक्षा प्राप्त की .
मित्रों, इस छोटी सी कहानी का सार यह है कि हम रिश्ते-नाते, पद या धन वैभव किसी में भी कितने ही बड़े क्यों न हों हम अगर अपने गुरु को उसका उचित स्थान नहीं देते तो हमारा भला होना मुश्किल है. और यहाँ स्थान का अर्थ सिर्फ ऊँचा या नीचे बैठने से नहीं है , इसका सही अर्थ है कि हम अपने मन में गुरु को क्या स्थान दे रहे हैं। क्या हम सही मायने में उनको सम्मान दे रहे हैं या स्वयं के ही श्रेस्ठ होने का घमंड कर रहे हैं ? अगर हम अपने गुरु या शिक्षक के प्रति हेय भावना रखेंगे तो हमें उनकी योग्यताओं एवं अच्छाइयों का कोई लाभ नहीं मिलने वाला और अगर हम उनका आदर करेंगे, उन्हें महत्व देंगे तो उनका आशीर्वाद हमें सहज ही प्राप्त होगा.

विपत्ति और घबराहट

एक राजा अपने कुछ सेवकों को साथ लेकर कहीं दूर देश को जा रहा था। रास्ते में कुछ यात्रा समुद्र की थी इसलिए जहाज में बैठकर चलने का प्रबन्ध किया। राजा अपने सेवकों समेत जहाज में सवार हुआ। मल्लाहों ने लंगर खोल दिया।
जहाज जब कुछ दूर आगे चला तो लहरों के थपेड़ों के साथ टकरा कर वह हिलने लगा। सब लोग कई बार यात्रा कर चुके थे इसलिए कोई व्यक्ति इस हिलने डुलने से घबराया नहीं किन्तु एक सेवक जो बिल्कुल नया था। चारों ओर पानी ही पानी और बीच में डगमगाता हुआ जहाज देखकर बुरी तरह घबराने लगा। उसकी सारी देह काँप रही थी। मुँह से घिग्घी बंध रही थी नसों का लोहू पानी हुआ जा रहा था।
उसके साथी अन्य सेवकों ने समझाया, राजा ने ढांढस बंधाया। उसे बार-बार समझाया जा रहा था कि ‘यह विपत्ति देखने में ही बड़ी मालूम देती है वास्तव में तो प्रकृति की साधारण सी हलचल है। हम लोगों को इनसे डरना नहीं चाहिये और धैर्यपूर्वक अच्छा अवसर आने की प्रतीक्षा करनी चाहिए।’ लेकिन इस समझाने बुझाने का उस पर कुछ असर नहीं हुआ। उसका डर और घबराहट बढ़ रहे थे धैर्य छोड़ कर वह घिग्घी बाँधकर रोने लगा।
यात्रा करने वालों में से एक सेवक बहुत बुद्धिमान था। उसने राजा से कहा-महाराज आज्ञा दें तो मैं इनका डर दूर कर सकता हूँ। राजा ने आज्ञा दे दी।
वह उठा और उस बहुत डरने वाले यात्री को उठाकर समुद्र में फेंक दिया। जब तीन चार गोते लग गये तो उसे पानी में से निकाल लिया गया। और जहाज के एक कोने पर बिठा दिया गया। अब न तो वह रो रहा था और न डर रहा था।
राजा ने उस बुद्धिमान सेवक से पूछा इसमें क्या रहस्य है कि तुमने इसे पानी में पटक दिया और अब यह निकला है तो बिलकुल नहीं डर रहा है?
उस सेवक ने हाथ जोड़कर नम्रतापूर्वक कहा- श्रीमान! इससे पहले इसने डूबने का कष्ट नहीं देखा और न यह जहाज का महत्व जानता था। अब इसने वह जानकारी प्राप्त कर ली है तो घबराना छोड़ दिया है।
हम साधारण सी विपत्ति को देखकर धैर्य छोड़ देते हैं और किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं। उस समय हमें स्मरण करना चाहिये दूसरे लोग जो इससे भी हजारों गुनी विपत्तियों में पड़े हैं और उन्हें सह रहे हैं। इस विपत्ति के समय में भी जो सुविधाएं हमें प्राप्त हैं उनके लिये ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिये क्योंकि दूसरे असंख्य मनुष्य उनसे भी वंचित हैं।

 Source : अखण्ड ज्योति 1940 दिसम्बर

मानवता के मूल्यों का महत्त्व

एक स्कूल में टीचर ने अपने छात्रो को एक कहानी सुनाई और बोली एक समय की बात है की
एक समय एक छोटा जहाज दुर्घटना ग्रस्त हो गया .
उस पर पति पत्नी का एक जोड़ा सफ़र कर रहा था .
उन्होने देखा की जहाज पर एक लाइफबोट है जिसमे एक ही व्यक्ति बैठ सकता है, जिसे देखते ही वो आदमी अपनी पत्नी को धक्का देते हुए खुद कूद कर उस लाइफबोट पर बैठ गया .
उसकी पत्नी जोर से चिल्ला कर कुछ बोली ....
टीचर ने बच्चो से पूछा की तुम अनुमान लगाओ वो चिल्लाकर क्या बोली होगी
बहुत से बच्चो ने लगभग एक साथ बोला की वो बोली होगी की तुम बेवफा हो , मे अंधी थी जो तुमसे प्यार किया ,मे तुमसे नफरत करती हूँ.
तभी टीचर ने देखा की एक बच्चा चुप बैठा है और कुछ नहीं बोल रहा ..
....उसने उसे बुलाया और कहा बताओ उस महिला ने क्या कहा होगा.
तो वो बच्चा बोलो मुझे लगता है की उस महिला ने चिल्लाकर कहा होगा की “अपने बच्चे का ख्याल रखना “.
टीचर को आश्चर्य हुआ और बोली क्या तुमने ये कहानी पहले सुनी है
उस बच्चे ने कहा नहीं लेकिन मेरी माँ ने मरने से पहले मेरे पिता को यही कहा था .
तुम्हारा जवाब बिलकुल सही है .
फिर वो जहाज डूब गया, और वो आदमी अपने घर गया और अकेले ही अपनी मासूम बेटी का पालन पोषण कर उसे बड़ा किया .
बहुत वर्षो के बाद उस आदमी की मृत्यु हो जाती है तो वो लड़की को घर के सामान मे अपने पिता की एक डायरी मिलती है जिसमे उसके पिता ने लिखा था की..... ..
जब वो जहाज पर जाने वाले थे तब ही उन्हें ये पता लग गया था की उसकी पत्नी एक गंभीर बीमारी से ग्रसित है और उसके बचने की उम्मीद नहीं है,
फिर भी उसको बचाने के लिए उसे लेकर जहाज से कही जा रहे थे इस उम्मीद मे की कोई इलाज हो सके .
लेकिन दुर्भाग्य से दुर्घटना हो गयी,
वो भी उसके साथ समुद्र की गहराइयों मे डूब जाना चाहता था,
लेकिन सिर्फ अपनी बेटी के लिए दुखी ह्रदय से अपनी पत्नी को समुद्र में डूब जाने को अकेला छोड़ दिया .
कहानी ख़त्म हो गयी पूरी क्लास मौन थी
टीचर समझ चुकी थी छात्रों को कहानी का मोरल समझ आ चूका था .
संसार मे अच्छाई और बुराई दोनों है,
लेकिन उनके पीछे दोनों मे बहुत जटिलताएं भी है,
जो परिस्थितियों पर निर्भर होती है,
और उन्हें समझना कठिन होता है .
इसीलिए हमें जो सामने दिख रहा है उस पर सतही तौर से देख कर अपनी राय नहीं बनाना चाहिए ,
जब तक हम पूरी बात समझ ना लें
अगर कोई किसी की मदद करता है तो उसका मतलब यह नहीं की वो एहसान कर रहा है,
बल्कि ये है की वो दोस्ती का मतलब समझता है
अगर कोई किसी से झगडा हो जाने के बाद माफ़ी मांग लेता है तो मतलब यह नहीं की वो डर गया या वो गलत था,
लेकिन यह है की वो मानवता के मूल्यों को समझता है .
कोई अपने कार्यस्थल पर पूरा काम निष्ठा से करता है तो मतलब यह नहीं की वो डरता है,
बल्कि वो श्रम का महत्त्व समझता है और देश के विकास मे अपना योगदान करता है .
अगर कोई किसी की मदद करने को तत्पर है तो उसका मतलब ये नहीं की वो फ़ालतू है या आपसे कुछ चाहता है, बल्कि ये है की वो अपना एक दोस्त खोना नही चाहता......

बालक एडीसन

बालक एडीसन को विज्ञान में बहुत रुचि थी। वह उस विषय में जानना और कुछ करना चाहता था। पर घर की स्थिति ऐसी न थी जो पढ़ाई का खर्च उठा सकें, साथ ही पेट भी भरता रहे। उसकी अकेली माता ही घर चलाती थी।
एडीसन और उसकी माता ने सलाह की कि किसी वैज्ञानिक के यहाँ उसको रख दिया जाय। जहाँ वह उनके घर का काम भी करता रहे, पढ़ता भी रहे, वैज्ञानिक प्रयोगों का पर्यवेक्षण भी करता रहे। एडीसन की माता इस प्रयोजन के लिए लड़के को कितने ही वैज्ञानिकों के पास लेकर गई, पर किसी ने भी इस झंझट में पड़ना स्वीकार न किया।
अन्त में एक वैज्ञानिक ने उसे दूसरे दिन लाने को कहा ताकि वह उसकी मौलिक प्रतिभा को जाँच सके और वह यदि उपयुक्त हो तो उसे अपने यहाँ रख सके। माता दूसरे दिन नियत समय पर लड़के को लेकर पहुँची।
वैज्ञानिक ने लड़के को झाड़ू थमाते हुए कहा-बच्चे इस कमरे को ठीक तरह झाड़ू लगाकर लाओ। लड़के ने पूरा मनोयोग लगाया और न कमरे के फर्श को साफ किया वरन् दीवारों छतों फर्नीचर को इस सफाई और व्यवस्था से सजाया कि उसकी समग्र प्रतिभा उस छोटे काम में ही लगी दीख पड़ी।
परीक्षा में लड़का उत्तीर्ण हुआ उसे वैज्ञानिक ने अपने घर रख लिया। छोटे मोटे घरेलू कार्यों के अतिरिक्त उससे अधिकतर वैज्ञानिक कार्य ही कराते। दिलचस्पी और समझदारी का समन्वय हुआ तो उसके सभी क्रिया-कलाप बढ़िया स्तर के होने लगे। वैज्ञानिक क्षेत्र में भी उसने असाधारण वरीयता प्राप्त कर ली। बड़ा होने पर उनने अनेकों वैज्ञानिक आविष्कार किये और यश के साथ धन भी कमाया।

योग्यता और उपलब्धि

एक कछुआ यह सोचकर बड़ा दुखी रहता था, कि पक्षीगण बड़ी आसानी से आकाश मेँ उड़ा करते है, परन्तु मैँ नही उड़ पाता । वह मन ही मन यह सोचविचार कर इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि यदि कोई मुझे एक बार भी आकाश मेँ पहुचा दे तो फिर मै भी पक्षियो की तरह ही उड़ते हुये विचरण किया करूँ।
एक दिन उसने एक गरूड़ पक्षी के पास जाकर कहा– “भाई! यदि तुम दया करके मुझे एक बार आकाश मेँ पहुँचा दो तो मैँ समुद्रतल से सारे रत्न निकालकर तुम्हे दे दुँगा। मुझे आकाश मे उड़ते हुऐ विचरण करने की बड़ी ईच्छा हो रही है।“
कछुए की प्रार्थना तथा आकांक्षा सुनकर गरुड़ बोला– “सुनो भाई! तुम जो चाहते हो उसका पूरा हो पाना असम्भव है, क्युकि अपनी क्षमता से ज्यादा आकांक्षा कभी पूरी नही हो पाती।“
परन्तु कछुआ अपनी जिद पे अड़ा रहा, और बोला- “बस तुम मुझे एक बार उपर पहुँचा दो, मैँ उड़ सकता हुँ, और उड़ुँगा। और यदि नही उड़ सका तो गिरकर मर जाऊंगा, इसके लिये तुम्हे चिँता करने की जरुरत नही।“
तब गरुड़ ने थोड़ा सा हँसकर कछुए को उठा लिया और काफी उँचाई पर पहुँचा दिया। उसने कहा– “अब तुम उड़ना आरम्भ करो।
इतना कहकर उसने कछुए को छोड़ दिया। उसके छोड़ते ही कछुआ एक पहाड़ी पर जा गिरा और गिरते ही उसके प्राण चले गये।
कहानी का तत्व ये है कि बिना योग्यता के उपलब्धियाँ दूर की कौडियाँ ही रहेंगी। अर्थात अपनी क्षमता को पहचानिये और उसी के अनुसार अपनी अकांक्षाओं को बढाइये। फिर भी अगर आप अधिक पाना चाहते हैं तो पहले स्वयं को उसे प्राप्त करने और धारण करने के काबिल बनाइये। अन्यथा अपनी क्षमता से ज्यादा आकांक्षा करने पर परिणाम वही निकलेगा जो कछुए को मिला॥

Thoughts of Swami Vivekanand ji

 त्रुटियाँ और गलतियाँ हमारे एक मात्र शिक्षक है।

"हमारे सभी कामो में, त्रुटियाँ और गलतियाँ हमारे एक मात्र शिक्षक है। जो गलतियाँ करते है, सचाई का रास्ता भी उनके दुवारा ही हासिल किया जाता है I"

"यदि तुम संसार पर उपकार करना चाहते हो, तो जगत पर दोषारोपण करना छोड़ दो।"
"भय और अधूरी इच्छाये ही समस्त दुखो का मूल है|"

"हम ईश्वर को खोजने के लिए और कहाँ जा सकते हैं|"

"अगर हम ईश्वर को अपने दिल में और हर जीवित चीज में नहीं देख सकते हैं तो हम ईश्वर को खोजने के लिए और कहाँ जा सकते हैं I"

"जिंदगी बहुत छोटी है, दुनिया में किसी भी चीज़ का घमंड अस्थायी है पर केवल जीवन वही जी रहा है जो दूसरों के लिए जी रहा है, बाकि सब जीवित से अधिक मृत हैI"

"विश्व के कल्याण की कोई संभावना नहीं है, जब तक महिलाओं की हालत में सुधार नहीं होगा I एक पक्षी के लिए एक पंख के सहारे उड़ान भरना संभव नहीं है I"

"मेरा विश्वास युवा पीढ़ी में है, आधुनिक पीढ़ी, उनके अंदर से मेरे कार्यकर्ता बाहर आएंगे I वे पूरी समस्या का हल कर देंगे, शेरों की तरह I"

"यही दुनिया है जो तुम्हे कोई महत्व नहीं देती, जब तुम किसी पर उपकार करते हो पर जब तुम उस काम को बंद कर देते हो तो तुम्हे बदनाम करना शुरू कर देती है I"

"अपने मन को उच्च विचारों और उच्चतम आदर्शों से भर दो, दिन और रात उन्हें अपने सामने रखो, तब उनसे आपके सर्वोतम काम की निर्माण होगा I "

"संभव की सीमा जानने का केवल एक मात्र तरीका है, असंभव से भी आगे निकल जाना I"  

"जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सके, मनुष्य बन सके, चरित्र गठन कर सके और विचारों का सामंजस्य कर सके I वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है I"

"ताकत में जीवन है और कमजोरी में हार I"

"आपको अपने अंदर से बाहर की तरफ विकसित होना पड़ेगा। कोई भी आपको यह नहीं सीखा सकता, और न ही कोई आपको आध्यात्मिक बना सकता हैIआपकी अपनी अंतरात्मा के अलावा आपका कोई शिक्षक नहीं हैI"

"आप जैसे विचार करेगें, वैसे ही बन जायेंगे I अगर आप अपने को कमज़ोर मानेंगे तो आप कमज़ोर बन जायेंगे और यदि आप अपने को ताक़तवर मानेंगे तो ताक़तवर बन जायेंगे I "

"मन की एकाग्रता ही समग्र ज्ञान है I"सभी शक्तियां तुम्हारे भीतर ही है, आप कुछ भी और सब कुछ कर सकते है I  "उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक अपना लक्ष्य न हासिल कर लो I 

"स्वयं में बहुत सी कमियों के बावजूद यदि मैं स्वयं से प्रेम कर सकता हूँ तो फिर दूसरों में थोड़ी बहुत कमियों की वजह से उनसे घृणा कैसे कर सकता हूँ I 

जिस दिन, आप के सामने कोई समस्या न आए - आप यकीन कर सकते हैं कि आप गलत रास्ते पर सफर कर रहे है I 

"जीवन के तीन अनमोल विचार-
 जो आपकी सहायता कर रहा है उसे कभी न भूले I
 जो आपको प्यार कर रहा है उससे नफरत न करे I
 जो आप पर विश्वास कर रहा है उसको धोखा न दे I" 

"कभी भी यह न सोचे कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है I"

"एक नायक बनो, और सदैव कहो "मुझे कोई डर नहीं है" I 

"जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते, तब तक आप परमात्मा पर भी विश्वास नहीं कर सकते I"

"जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरुरी नहीं है पर जो रिश्ते हैं उन में जीवन होना जरुरी है I"

"गलती एक तरफा हो तो झगड़ा ज्यादा देर तक नहीं चलता।"

"जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिए, नहीं तो लोगों का विश्वास उठ जाता है। "

"एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ। "

"विश्व में आधे से अधिक लोग इसलिए असफल हो जाते है कि समय पर उनमें साहस का संचार नहीं हो पाता और वे भयभीत हो उठते है । "

"कभी भी अपने पर से विश्वास मत खोओ, तुम इस विश्व में कुछ भी कर सकते हो।"

"जीवन का रहस्य केवल आनंद नहीं है बल्कि अनुभव के माध्यम से सीखना है।"

"कोई भी व्यक्ति जीवन में कुछ नहीं पा सकता, जबतक कि वह उसे कमा नहीं लेता I  यह एक शाश्वत नियम है।"

"सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा|"

"जो सत्य है, उसे निर्भीक होकर लोगों से कहो। उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। "

"डर उन लोगों का पीछा कभी नहीं छोड़ता, जो गलत तरीके से अपनी आजीविका कमाते है या दूसरों को नुकसान पहुंचाते है।"

"हमें ऐसी शिक्षा चाहिए, जिससे चरित्र का निर्माण हो, मन की शांति बढ़े, बुद्धि का विकास हो और मनुष्य अपने पैर पर खड़ा हो सके।"

"संसार में हर वस्तु में अच्छे और बुरे दो पहलु हैं। जो अच्छा पहलु देखते है, वे अच्छाई; और जिन्हे केवल बुरा पहलु देखना आता है, वे बुराई संग्रह करते हैं।"

"संपूर्ण जगत की शक्तियां पहले से हमारी है।  वो हमी है, जो अपनी आँखों पर हाथ रख लेते है और फिर रोते है कि कितना अंधेरा है।" 

"दिन में एक बार अपने आप से बात करे, अन्यथा आप इस दुनिया में एक उत्कृष्ट व्यक्ति से मिलने का मौका गवा देंगे। "  

 

आभासी दुनिया से बाहर निकलना

ईमेल, फेसबुक, ट्विटर, चैट, मोबाइल और शेयरिंग की दुनिया में यह बहुत संभव है कि आप वास्तविक दुनिया से दूर होते जाएँ. ये चीज़ें बुरी नहीं हैं लेकिन ये वास्तविक दुनिया में आमने-सामने घटित होनेवाले संपर्क का स्थान नहीं ले सकतीं. लोगों से मेलमिलाप रखने, उनके सुख-दुःख में शरीक होने से ज्यादा कनेक्टिंग और कुछ नहीं है. आप चाहे जिस विधि से लोगों से जुड़ना चाहें, आपका लक्ष्य होना चाहिए कि आप लम्बे समय के लिए जुड़ें. दोस्तों की संख्या नहीं बल्कि उनके साथ की कीमत होती है.

बोनस टिप:

हम कई अवसरों पर खुद को पीछे कर देते हैं क्योंकि हमें कुछ पता नहीं होता या हम यह नहीं जानते कि शुरुआत कहाँ से करें. ऐसे में “मैं नहीं जानता” कहने के बजाय “मैं यह जानकर रहूँगा” कहने की आदत डालें. यह टिप दिखने में आसान है पर बड़े करिश्मे कर सकती है. इसे अपनाकर आप बिजनेस में आगे रहने के लिए ज़रूरी आक्रामकता दिखा सकते हैं. आप योजनाबद्ध तरीके से अपनी किताबें छपवा सकते हैं. और यदि आप ठान ही लें तो पूरी दुनिया घूमने के लिए भी निकल सकते हैं. संकल्प लें कि आप जानकारी नहीं होने को अपनी प्रगति की राह का रोड़ा नहीं बनने देंगे.

अपने हुनर और काबिलियत को निखारें:

पेन और पेपर लें. पेपर के बीच एक लाइन खींचकर दो कॉलम बनायें. पहले कॉलम में अपने पिछले तीस दिनों के सारे गैरज़रूरी खर्चे लिखें जैसे अनावश्यक कपड़ों, शौपिंग, जंक फ़ूड, सिनेमा, मौज-मजे में खर्च की गयी रकम. हर महीने चुकाए जाने वाले ज़रूरी बिलों की रकम इसमें शामिल न करें. अब दूसरे कॉलम में उन चीज़ों के बारे में लिखें जिन्हें आप पैसे की कमी के कारण कर नहीं पा रहे हैं. शायद आप किसी वर्कशौप या कोचिंग में जाना चाहते हों या आपको एक्सरसाइज बाइक खरीदनी हो. आप पहले कॉलम में किये गए खर्चों में कटौती करके दुसरे कॉलम में शामिल चीज़ों के लिए जगह बना सकते हैं.