ग्रहो का इलाज बिना पैसो के खर्च किये बिना :

प्रभु कहते हैं की हे प्राणी तू पाप न कर अगर पाप करेगा तो यह कर्ज है जिस को चुकाने तुझे बार बार यंहा आना पड़ेगा |
मानव जन्म मैं तो तू बेटा पिता बहन भाई माँ बन कर चूका देगा लेकिन अगर तूने पाप नहीं रोका तो फिर तू उसी व्यक्ति के घर मैं पशु बनकर कर्ज चुकाएगा जैसे बजन ढोयेगा दुःख पायेगा|
हे मानव तूने पिछले जन्म मैं कर्ज लिया था जिस को लेनेतेरे आसपास रिश्ता बनाकर तेरे अपने हैं और जो या तो लेने आये हैं |
लोग कहते हैं कितनी पूजा पाठ कर ली दान कर लिए कोई फल नहीं मिल रहा हे मानव पिछले जन्म का कर्ज देख कितना लिया किस से लिया उस को चूका फिर तू सुखी होगा |
ऐसे तो पूजा पाठ करके तू सुखी नहीं होसकता|
सूर्य ख़राब है पिता की सेवा कर
चंद्र ख़राब है माँ का आशीष ले,उस का कर्ज है
मंगल ख़राब है भाई को कर्ज है उस को खुश कर
बुध ख़राब है बहन बुया का आशीष ले उस का कर्ज है
गुरु ख़राब है मंदिर का कर्ज है वंहा सेवा कर
दादा या किसी बजुर्ग की सेवा कर
सुक्र ख़राबहै पत्नीका कर्ज चूका
शनि राहु खराब है अपने आधीन लोगो को खुश कर
केतु ख़राब है पुत्र के कर्ज को चूका
ऐसे हर कर्जा तुझे परेसान करेगा पहले उन को चूका तब तू सुखी होगा |


सफलता का फॉर्मूला

हमेशा अपनी पूरी तन्मयता, एकाग्रता से काम करो, उसमें अपना मन, तन और हृदय लगा दो। फल को महत्व मत दो।
यही फॉर्मूला है : स्मरण करो, समर्पण करो और पूरी निष्ठा से कर्म करो।
तुम्हारे हाथ में केवल यह एक चीज है कर्म, फल तुम्‍हारे हाथ में नहीं है।
हर रोज, सुबह से शाम तक, जब तक तुम काम कर रहे हो उस दिव्य को याद रखो और उसे ही अर्पित करो। फल की चिन्‍ता ना करो।
कहने का ये तात्‍पर्य नही है कि फल की इच्‍छा के बिना ही कर्म किये जाओ। ऐसे तो निराशा मन में व्‍याप्‍त हो जायेगी। इसका अर्थ ये है कि यदि कर्म करोगे तो फल तो मिलेगा ही उसके लिये चिन्‍ता क्‍यों करते हो।
फिर यदि कार्य का फल ना मिले तो इसका मतलब ये नहीं कि ईश्‍वर ने उसका फल आपको नही दिया बल्कि इसका मतलब ये है कि आपने सही दिशा में प्रयास ही नही किया।
कोई भी काम हो , कैसा भी उद्देश्य हो , उसमें सफलता सिर्फ प्रार्थना करने , दूसरों की खामियां निकालने , व्यवस्था को कोसने अथवा अभावों का रोना रोने से नहीं मिलती। किसी भी कार्य में सफलता तब मिलती है जब किसी उद्देश्य को लेकर हम एकाग्र हों और पूरे समर्पण से वह कार्य करें।

जीवन की साधना में सफलता कैसे?


मनुष्य को अपने जीवन में विकास करने के लिए प्रयत्न तो करना ही पड़ता है। प्रयत्न करने का पूरा साहस चाहिए, खाली बातों से विकास नही होता। पहले अपने जीवन का लक्ष्य तय करें, कि मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है, मुझे क्या खोजना है, मैं क्या हो सकता हूँ और मुझे क्या होना चाहिए, तब आगे बात बन सकती है। और आप सोचे जो पीछे से चलता आ रहा है, वो ही आगे चलता रहेगा यानि कि लकीर के फकीर सुनी-सुनाई बातों पर चलते रहे। उससे कुछ भी विकास नही होगा, आपके अंदर नया करने की क्षमता चाहिए। तभी आप आगे बढ़ेंगे, और लोगों का मार्ग दर्शन कर सकते है। मार्ग दर्शन तो आपको भी चाहिए और आपसे बढ़िया आपका मार्ग दर्शक कोई नही हो सकता। आप ही जब तक अपने स्वभाव को नहीं जानेंगे, तब तक आपको दूसरे की मार्ग दर्शन की जरुरत पड़ सकती है। हम तो ये बता सकते है कि आप इस विधि से अपने आपको जानने लगेंगे और जानने के बाद में आपको अपना स्वयं आत्म-गुरु बनना है। दूसरा गुरु तो आपको कहीं-न-कहीं बहका सकता है, भटका भी सकता है। क्योंकि अब वो समय आ गया है, कि लोगों के पास गुरु की सत्ता को स्वीकार करने का समय नही है। उसकी अपनी सत्ता इतनी बड़ी है कि उसको ही नही सम्भाल पा रहा है, वो गुरु की सत्ता कहाँ संभालेगा। और आप जिस गुरु से मार्ग दर्शन लें, मार्ग दर्शन लेने के बाद अपने आप तक अपनी पहुँच बनाये और अपने स्वभाव को जानने के बाद फिर चले आगे की ओर। फिर तो आप अपने स्वयं के मार्ग दर्शक हो जायेंगे।
अगर दूसरा मार्गदर्शन देगा तो आप दूसरे के रास्ते पर चलेंगे, जरुरी नहीं है कि आप अपनी मंजिल पर पहुंच जाये। दूसरा कभी-कभी आपके स्वभाव को नहीं जान पाता और आप अपनी मंजिल को पूरी तरह प्राप्त नही कर पाते। आपको तो स्वयं को जानना है, उसके द्वारा ही आपके अंदर चेतना जाग्रत हो सकती है और धैर्य भी प्राप्त हो सकता है। पहली बात तो बिना धैर्य के आप साधना मे भटक जायेंगे। बहुत-से लोग जल्दी-जल्दी जानने की कोशिश करते है। आदमी का जो पूरा सिस्टम है, उसकी जो आंतरिक गठन है वो सहज नही है, बैचेनी से भरा है और जल्दबाजी में सब कुछ सीखना चाहता है, जिससे वह अपने आपको धोखे में रखता है। उसको भ्रांतियां होती है और उन भ्रांतियों की वजह से वो फ़ैल होता है, उसको यह भ्रम रहता है कि वह इसमें सफल हो जायेगा क्योंकि वो अपनी पूर्ण योग्यता को जान नही पाता और न ही इस्तेमाल कर पाता। जो योग्यता नही होती है और वो ये समझता है कि ये योग्यता मेरे अंदर है, यही उसकी असफलता का कारण है। अगर उसको ये भ्रांति हो जाये कि तेरे अंदर ये योग्यता है और तू कर गुजरेगा, पहले इन भ्रांतियों से छुटकारा पाना होगा। स्वयं को जानने की प्रक्रिया पर चलना होगा और अपने स्वभाव को जानना होगा, क्योंकि साधना के मार्ग पर प्रयत्न तो आपको ही करना होगा। इसके बिना आपके जीवन में रूपांतरण घटित नही हो सकता।
मैं आपसे आध्यात्म या दर्शन की बात नहीं कर रहा हूँ, मैं अच्छे जीवन की बात कर रहा हूँ, जो अच्छा जीवन आपको जीना है। मैं आपके पुराने तौर-तरीके से जीवन जीने की शैली में रूपांतरण लाने की बात कर रहा हूँ। अगर आपको पहले से बढ़िया जीवन जीना हैं, तो पहले आपको रूपांतरित होना होगा। क्योंकि वहां पर बैठे रहकर और वैसा ही सोचकर आप रूपांतरित नही हो सकते, अगर आपको बदलना है तो वहां से हटना होगा, वहां से हटोगे तो अलग सोचोगे, तभी रूपांतरण आएगा जीवन में। हरेक आदमी में साहस नही होता कि वह रूपांतरण के लिए तैयार हो जाये। अगर आप रूपांतरण के लिए तैयार हो जायेंगे, तो आप वो नही रहेंगे जो आप पहले थे। आपका एक नया व्यक्तित्व आपके सामने आएगा। वही व्यक्तित्व आपके पूर्ण रूपांतरण की बात करता है क्योंकि आप संतुष्ट नहीं है अपने आपमें। पर आपको सही मार्ग का पता नही, असंतुष्ट आदमी जो कुछ होना चाहता है, या तो वो उसकी टाइप नही है या फिर वो पुराने रास्ते पर चलना चाहता है। उसको डर है नए रास्ते पर चलने का। ध्यान और साधना का मार्ग बिल्कुल अकेले का है, आपका अपना नया मार्ग है। जब आप ध्यान व साधना के मार्ग से अपने अंदर प्रवेश करेंगे और अपने आपको जानने लगेंगे, तभी मिलेगी आपको अपनी सही दिशा। आप जो होना चाहते है, आपकी अपनी टाइप, अपना स्वभाव जानने के बाद आपके अंदर रूपांतरण घटित होगा। इस प्रयास में चूके नही, चूकने से रूकावट पड़ जाती है। साधना के मार्ग पर चलने से रुकना नहीं है, रूपांतरण अवश्य घटित होगा।


सही दिशा का चुनाव :


एक पहलवान जैसा, हट्टा-कट्टा, लंबा-चौड़ा व्यक्ति सामान लेकर किसी स्टेशन पर उतरा। उसनेँ एक टैक्सी वाले से कहा कि मुझे साईँ बाबा के मंदिर जाना है।
टैक्सी वाले नेँ कहा- 200 रुपये लगेँगे। उस पहलवान आदमी नेँ बुद्दिमानी दिखाते हुए कहा- इतने पास के दो सौ रुपये, आप टैक्सी वाले तो लूट रहे हो। मैँ अपना सामान खुद ही उठा कर चला जाऊँगा।
वह व्यक्ति काफी दूर तक सामान लेकर चलता रहा। कुछ देर बाद पुन: उसे वही टैक्सी वाला दिखा, अब उस आदमी ने फिर टैक्सी वाले से पूछा भैया अब तो मैने आधा से ज्यादा दुरी तर कर ली है तो अब आप कितना रुपये लेँगे?
टैक्सी वाले नेँ जवाब दिया- 400 रुपये।
उस आदमी नेँ फिर कहा- पहले दो सौ रुपये, अब चार सौ रुपये, ऐसा क्योँ।
टैक्सी वाले नेँ जवाब दिया- महोदय, इतनी देर से आप साईँ मंदिर की विपरीत दिशा मेँ दौड़ लगा रहे हैँ जबकि साईँ मँदिर तो दुसरी तरफ है।
उस पहलवान व्यक्ति नेँ कुछ भी नहीँ कहा और चुपचाप टैक्सी मेँ बैठ गया।
इसी तरह जिँदगी के कई मुकाम मेँ हम किसी चीज को बिना गंभीरता से सोचे सीधे काम शुरु कर देते हैँ, और फिर अपनी मेहनत और समय को बर्बाद कर उस काम को आधा ही करके छोड़ देते हैँ। किसी भी काम को हाथ मेँ लेनेँ सेपहले पुरी तरह सोच विचार लेवेँ कि क्या जो आप कर रहे हैँ वो आपके लक्ष्य का हिस्सा है कि नहीँ।
Moral :
हमेशा एक बात याद रखेँ कि दिशा सही होनेँ पर ही मेहनत पूरा रंग लाती है और यदि दिशा ही गलत हो तो आप कितनी भी मेहनत का कोई लाभ नहीं मिल पायेगा। इसीलिए दिशा तय करेँ और आगे बढ़ेँ कामयाबी आपके हाथ जरुर थामेगी।








सफलता की कुंजी - मुश्किलो का सामना :

एक ट्रक में मारबल जा रहा था।उसमें एक भगवान की मूर्तिऔर चकोर टाइल्स साथ- साथ जा रही थी।
रास्ते में आपस में टकराते (टक-टक-टक) हुए टाइल्स ने भगवान् की मूर्ति से कहा...भाई उपर वाले के द्वारा हम दोनों के साथ यह भेदभाव क्यों ?
मूर्ति: कैसा भेदभाव ?
टाइल्स: भाई तुम भी पत्थर, मैं भी पत्थरतुम भी उसी खान से निकले जिससे मैं निकलातुम उसी के द्वारा बेचे और खरीदें गये जिनके द्वारा मैं|
तुम भी उसी ट्रक में जा रहे हो जिसमें मैं |
तुम भी उसी मंदिर में लगाए जाओगे जिसमें मैं |
लेकिन मेरे भाई तेरी तो पूजा होगी,
और मैं पावं तले कुचला जाऊँगा।
यह भेदभाव आखिर क्यों ?
मूर्ति: सुनो, जब हमें छेनी-हथोड़े से तराशा जा रहा थातब तुम चोट बरदाश्त नहीं कर सके और टूट गये।
मैं चोट को बरदाश्त करता गया।कभी आखँ बनी, कभी नाक बनी, कभी पैर बने, कभी हाथ।
ऐसी लाखों करोड़ों चोटें सहन की मैंने। चोट सहते-सहते...
मेरा रूप निखर गया और मैं पूजनीय हो गया।
तुम सह नहीं सके और खंडित हो गये।
तुम्हारे छोटे-छोटे टुकड़े हो गये और तुम कुचलनीय हो गये...

इसलिए दोस्तो, जो व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लग्न से हर मुश्किलो का सामना करता हुआ आगे बढ़ता है, वही व्यक्ति अंत मे सफलता को प्राप्त करता है|







MAGIC OF PRAISE & HONOR

ये कहानी इक ऐसे व्यक्ति की है जो एक फ्रीजर प्लांट में काम करता था।वह दिन का अंतिम समय था व् सभी घर जाने को तैयार थे तभी प्लांट में एक तकनीकी समस्या उत्पन्न हो गयी और वह उसे दूर करने में जुट गया। जब तक वह कार्य पूरा करता तब तक अत्यधिक देर हो गयी। दरवाजे सील हो चुके थे व लाईटें बुझा दी गईं थी। बिना हवा व् प्रकाश के पूरी रात आइस प्लांट में फसें रहने के कारण उसकी
बर्फीली कब्रगाह बनना तय था।

घण्टे बीत गए तभी उसने किसी को दरवाजा खोलते पाया।... क्या यह इक चमत्कार था ? सिक्यूरिटी गार्ड टोर्च लिए खड़ा था व् उसने उसे बाहर नि
कलने में मदद की। वापस आते समय उस व्यक्ति ने सेक्युरिटी गार्ड से पूछा "आपको कैसे पता चला कि मै भीतर हूँ ?" 

गार्ड ने उत्तर दिया "सर, इस प्लांट में 50 लोग कार्य करते हैं पर सिर्फ एक आप हैं जो सुबह मुझे हैलो व् शाम को जाते समय बाय कहते हैं।आज सुबह आप ड्यूटी पर आये थे पर शाम को आप बाहर नही गए । इससे मुझे शंका हुई और मैं देखने चला आया। वह व्यक्ति नही जानता था कि उसका किसी को छोटा सा सम्मान देना कभी उसका जीवन बचाएगा।


याद रखें, जब भी आप किसी से मिलते हैं तो उसका गर्मजोश मुस्कुराहट के साथ सम्मान करें । हमें नहीं पता पर हो सकता है कि ये आपके जीवन में भी चमत्कार दिखा दे ।

असफल होने का डर :

एक बार कुछ वैज्ञानिकों ने एक बड़ा ही रोचक परीक्षण किया..उन्होंने पाँच बन्दरों को एक बड़े से पिंजरे में बंद कर दिया और बीचों-बीच एक सीढ़ी लगा दी जिसके ऊपर केले लटक रहे थे..जैसा की अनुमानित था, एक बन्दर की नज़र केलों पर पड़ी वो उन्हें खाने के लिए दौड़ा..जैसे ही बन्दर ने कुछ सीढ़ियां चढ़ीं, उस पर ठण्डे पानी की तेज धार डाल दी गयी और उसे उतर कर भागना पड़ा..पर वैज्ञानिक यहीं नहीं रुके | उन्होंने एक बन्दर के किये गए की सजा बाकी बन्दरों को भी दे डाली और सभी को ठन्डे पानी से भिगो दिया..बेचारे बन्दर हक्के-बक्के एक कोने में दुबक कर बैठ गए..पर वे कब तक बैठे रहते,कुछ समय बाद एक दूसरे बन्दर को केले खाने का मन किया..और वो उछलता कूदता सीढ़ी की तरफ दौड़ा..अभी उसने चढ़ना शुरू ही किया था कि पानी कीतेज धार से उसे नीचे गिरा दिया गया..और इस बार भी इस बन्दर के गुस्ताखी की सज़ा बाकी बंदरों को भी दी गयी..एक बार फिर बेचारे बन्दर सहमे हुए एक जगह बैठ गए...थोड़ी देर बाद जब तीसरा बन्दर केलों के लिए लपका तो एक अजीब वाकया हुआ..बाकी के बन्दर उस पर टूट पड़े और उसे केले खाने से रोक दिया, ताकि एक बार फिर उन्हें ठन्डे पानी की सज़ा ना भुगतनी पड़े..अब वैज्ञानिकों ने एक और मज़ेदार चीज़ की..पिंजरे के अंदर बंद, बंदरों में से एक को बाहर निकाल दिया और एक नया बन्दर अंदर डाल दिया..नया बन्दर वहां के नियम नहीं जानता था.वो तुरंत ही केलों की तरफ लपका..पर बाकी बंदरों ने झट से उसकी पिटाई कर दी..उसे समझ नहीं आया कि आख़िर क्यों ये बन्दर ख़ुद भी केले नहीं खा रहे और उसे भी नहीं खाने दे रहे..ख़ैर उसे भी समझ आ गया कि केले सिर्फ देखने के लिए हैं खाने के लिए नहीं..इसके बाद वैज्ञानिकों ने एक और पुराने बन्दर को निकाला और नया अंदर कर दिया..इस बार भी वही हुआ नया बन्दर केलों की तरफ लपका पर बाकी के बंदरों ने उसकी धुनाई कर दी और मज़ेदार बात ये है कि पिछली बार आया नया बन्दर भी धुनाई करने में शामिल था..जबकि उसके ऊपर एक बार भी ठंडा पानी नहीं डाला गया था!प्रयोग के अंत में सभी पुराने बन्दर बाहर जा चुके थे और नए बन्दर, अंदर थे जिनके ऊपर एक बार भी ठंडा पानी नहीं डाला गया था..पर उनका व्यवहार भी पुराने बंदरों की तरह ही था..वे भी किसी नए बन्दर को केलों को नहीं छूने देते |

मित्रों, हमारे समाज में भीये आचरण देखा जा सकता है..जब भी कोई नया काम शुरू करने की कोशिश करता है,चाहे वो पढ़ाई, खेल, व्यापार, राजनीति, समाजसेवा या किसी और क्षेत्र से जुड़ा हो, उसके आस पासके लोग उसे ऐसा करने से रोकते हैं..उसे असफल होने का डर दिखाया जाता है..और मज़े की बात ये है कि उसे रोकने वाले अधिकांश लोग वो होते हैं जिन्होंने ख़ुद उस क्षेत्र में कभी हाथ भी नहीं आज़माया होता..इसलिए यदि आप भी कुछ नया करने की सोच रहे हैं और आपको भी समाज या आस पास के लोगों का विरोधसहन करना पड़ रहा है तो थोड़ा संभल कररहिये..अपने तर्क और क़ाबीलियत की सुनिए..ख़ुद पर और अपने लक्ष्य पर विश्वास क़ायम रखिये..और बढ़ते रहिये..कुछ बंदरों की ज़िद्द के आगे आप भी बन्दर मत बन जाइए |



मंन की शक्ति :

एक आदमी गुब्बारे बेच कर जीवन-यापनकरता था | वह गाँव के आस-पास लगनेवाली हाटों में जाता और
गुब्बारेबेचता | बच्चों को लुभाने के लिए वह तरह-तरह केगुब्बारे रखता …लाल, पीले ,हरे, नीले…. और जब कभी उसे लगता की बिक्री कम हो रही है वह झट से एक गुब्बारा हवा में छोड़ देता, जिसे उड़ता देखकर बच्चे खुश हो जाते और गुब्बारे
खरीदने के लिए पहुँच जाते| इसी तरह तरह एक दिन वह हाट में गुब्बारे बेच रहा था और बिक्री बढाने के लिए बीच-बीच में गुब्बारे उड़ा रहा था| पास ही खड़ा एक छोटा बच्चा ये सब बड़ी जिज्ञासा के साथ देख रहा था | इस बार जैसे ही गुब्बारे वाले ने
एक सफ़ेद गुब्बारा उड़ाया वह तुरंत उसके पास पहुंचा और मासूमियत से बोला, ” अगर आप ये काला वाला गुब्बारा छोड़ेंगे…
तो क्या वो भी ऊपर जाएगा ?”


गुब्बारा वाले ने थोड़े अचरज के साथ उसे देखा और बोला, ” हाँ बिलकुल जाएगा बेटे, !
गुब्बारे का ऊपर जाना इस बात पर नहीं निर्भर करता है कि वो किस रंग का है बल्कि इसपर निर्भर करता है कि उसके अन्दर
क्या है |”


Friends , ठीक इसी तरह हम इंसानों के लिए भी ये बात लागु होती है. कोई अपनी life में क्या achieve करेगा, ये उसके बाहरी रंग-रूप पर नहीं depend करता है , ये उसके भीतर की शक्तियों ,उसकी काबिलियत,क्षमताऔर will power पर depend करता है | 


डर , चिंता , शंका , निराशा , पूर्वाग्रह जैसी नकारात्मक भावनाएं है जो हमें जिंदगी में आगे नहीं बढ़ने देती। ये भाव जब हम हमारे अर्धजाग्रत मंन को पहुंचाते हैं तो हमारा अर्धजाग्रत मंन इन्ही विचारों के अनुसार हमारी जिंदगी को ऐसा ही बना देता है। इसीलिए हमें हमेशा सकारात्मक भाव ही रखने चाहिए। 


I AM THE BEST

मेरे प्यारे दोस्तों, मेरी बात ध्यान से सुनो| मै और आप सब बहुत अच्छे है | इसलिए आज से  अपने आप को नकारात्मक कोम्प्लिमेंट्स देना बंद करो | आप कुछ भी कर सकते हो।  आप में  सब कुछ करने के लिए सभी संभावित और क्षमता है। भगवान ने हम सब को कुछ न कुछ स्पेशल दिया है जिसमे हमारी महारत है |
इसलिए दोस्तों जो आपको नहीं मिला उसके लिए रोना बंद करो और पेन और डायरी उठाओ और अपने मास्टर आइडियाज को लिखो जिसमे आपकी मास्टरी है |

जरा सोचो दोस्तों आप इन क्षेत्रो मई इतने निपुण क्यों है क्योकि भगवान ने ये आपको दिए है| जब खुद भगवान आपके साथ है तो फिर क्यों परेशान होते हो|

तो इसलिए दोस्तों खुश हो जाइए की आप भगवान की बनाई गई सबसे अच्छी और प्रतिभासाली मूरत हो | उसके पास जाने से पहले कुछ ऐसा कर जाओ कि दुनिया वाले आपको  करे और कहे कि वाह क्या बंदा / बंदी थी |
दोस्तों कभी सोचो कि ये ज़िन्दगी हमें दोबारा नहीं मिलेगी और हमने अपनी ज़िन्दगी के कितने साल गवा दिए| अब तो जागो और चल पदो अपने गोल को पाने के लिए| अपना गोल निर्दारित करो और उसे पाने के लिए ऐसे म्हणत करो कि बस यही ज़िन्दगी का आखिरी काम है और फिर देखो दोस्तों सफलता आपके कदम चूमेगी |

और फिर आप खुद कहोगे कि - "I AM THE BEST"

LIVE YOUR LIFE LIKE BUTTERFLY

दोस्तों जरा तितली को देखो। इसका अपना जीवन काल बहुत कम है, फिर भी यह अपनी लाइफ को बहुत अच्छी तरह से जीती है | यह एक फूल से दूसरे फूल पे ,प्रकृति की सबसे खूबसूरत रचना के paas जाती है। यह प्रकृति के  अमृत-मधुर भाग को ग्रहण करती है। इसे खाने या पीने के लिए कुछ और दे दो, लेकिन यह केवल सबसे अच्छा, शहद चुनती है | इसी तरह, हमें प्यार से बोलना, सोचना और जीना चाहिए और अपनी जिंदगी को सुन्दर तरीके से एन्जॉय करना चाहिए|



ENHANCE YOUR SKILLS, SURELY GET SUCCESS :

कई बार ऐसा होता है कि हम मन लगाकर ईमानदारी से अपना काम करते हैं इसके बाद भी हमारी तरक्की नहीं होती। जबकि जो व्यक्ति हमारे बाद कंपनी में आता है उसकी तरक्की जल्दी हो जाती है। ऐसी स्थिति में हम खुद को ठगा हुआ सा महसूस करते हैं और अपने मालिक को दोषी ठहराते हैं। आखिर ऐसा हुआ क्यों? इस विषय पर हमारा ध्यान नहीं जाता। जबकि होना यही चाहिए कि सबसे पहले हमें उस व्यक्ति तथा खुद की तुलना करें फिर खुद में बदलाव लाएं और अपनी कार्यक्षमता बढ़ाएं। जब हम ऐसा कर लेंगे तो आपकी तरक्की की बाधा खुद ही हट जाएगी।
किसी गांव में हरिया नाम का एक लकड़हारा रहता था। वह अपने मालिक के लिए रोज जंगल से लकडिय़ां काटकर लाता था। यह काम करते हुए उसे पांच साल हो चुके थे लेकिन मालिक ने न तो कभी उसकी तारीफ की और न ही वेतन बढ़ाया। थोड़े दिनों बाद उसके मालिक ने जंगल से लकडिय़ां काटकर लाने के लिए बुधिया नाम के एक और लकड़हारे को भी नौकरी दे दी। बुधिया अपने काम में बड़ा माहिर था। वह हरिया से ज्यादा लकडिय़ां काटकर लाता था। एक साल के अंदर ही मालिक ने उसका वेतन बढ़ा दिया। यह देखकर हरिया बहुत दु:खी हुआ और मालिक से इसका कारण पूछा।

मालिक ने कहा कि पांच साल पहले तुम जितने पेड़ काटते थे आज भी उतने ही काटते हो। तुम्हारे काम में कोई फर्क नहीं आया है जबकि बुधिया तुमसे ज्यादा पेड़ काटकर लाता है। यदि तुम भी कल से ज्यादा पेड़ काटकर लाओगे तो तुम्हारा वेतन भी बढ़ जाएगा। हरिया ने सोचा कि बुधिया भी उतनी ही देर काम करता थे जितनी देर मैं। तो भी वह ज्यादा पेड़ कैसे काट लेता है। यह सोचकर वह बुधिया के पास गया और उससे इसका कारण पूछा। बुधिया ने बताया कि वह कल काटने वाले पेड़ को एक दिन पहले ही चुन लेता है ताकि दूसरे दिन इस काम में वक्त खराब न हो। इसके अलावा रोज कुल्हाड़ी में धार भी करता है इससे पेड़ जल्दी कट जाते हैं और कम समय में ज्यादा काम हो जाता है।


ALWAYS THINK POSITIVE

हमारा दिमाग विचारों का निर्माण करने वाली एक फैक्ट्री है . इसमें हर वक़्त कोई ना कोई thought बनती रहती है. और इस काम को कराने के लिए हमारे पास दो बड़े ही आज्ञाकारी सेवक हैं और साथ ही ये अपने काम में माहिर भी हैं . आप कभी भी इनकी परीक्षा ले लीजिये ये उसमे सफल ही होंगे . आइये इनका परिचय कराता हूँ-

पहले सेवक का नाम है- Mr. Triumph या मिस्टर विजय

दुसरे सेवक का नाम है- Mr. Defeat या मिस्टर पराजय

Mr . विजय का काम है आपके आदेशानुसार positive thoughts का निर्माण करना. और Mr. पराजय का काम है आपके आदेशानुसार negative thoughts का निर्माण करना. और ये सेवक इतने निपुण हैं कि ये आपके इशारे के तुरंत समझ जाते हैं और बिना वक़्त गवाएं अपना काम शुरू कर देते हैं.

Mr. विजय इस बात को बताने में में specialize करते हैं कि आप चीजों को क्यों कर सकते हैं?, आप क्यों सफल हो सकते हैं?

Mr. पराजय इस बात को बताने में specialize करते हैं कि आप चीजों को क्यों नहीं कर सकते हैं?,आप क्यों असफल हो सकते हैं?

यदि life को improve करना है तो जितना अधिक हो सके thoughts produce करने का काम Mr. विजय को ही दीजिये . यानि positive self talk कीजिये . नहीं तो अपने आप ही Mr. पराजय अपना अधिकार जमा लेंगे|

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LEARNING FROM MOVIE SHAMITABH :-

 मीडिया : सर , क्या आपने सपने मे भी सोचा था कि आपको इतनी सफलता मिलेगी. क्या इतना भरोसा था अपने टैलेंट पर आपको | 

 धनुष : टैलेंट के भरोसे चलता तो बस सपना ही देखता रहता मुझे सपने से जयादा अपनी चाहत पे भरोसा था| बहुत बहुत बहुत चाहता था कि मै एक्टर बनु | जब हम किसी चीज को बहुत बहुत चाहते है ना तो मिल ही जाती है | 

इसलिए दोस्तों अपने टारगेट को बहुत बहुत चाहो और उसके लिए जम कर मेहनत करो और फिर देखो सफलता आपके कदम चूमेगीl



 

आभासी दुनिया से बाहर निकलना

ईमेल, फेसबुक, ट्विटर, चैट, मोबाइल और शेयरिंग की दुनिया में यह बहुत संभव है कि आप वास्तविक दुनिया से दूर होते जाएँ. ये चीज़ें बुरी नहीं हैं लेकिन ये वास्तविक दुनिया में आमने-सामने घटित होनेवाले संपर्क का स्थान नहीं ले सकतीं. लोगों से मेलमिलाप रखने, उनके सुख-दुःख में शरीक होने से ज्यादा कनेक्टिंग और कुछ नहीं है. आप चाहे जिस विधि से लोगों से जुड़ना चाहें, आपका लक्ष्य होना चाहिए कि आप लम्बे समय के लिए जुड़ें. दोस्तों की संख्या नहीं बल्कि उनके साथ की कीमत होती है.

बोनस टिप:

हम कई अवसरों पर खुद को पीछे कर देते हैं क्योंकि हमें कुछ पता नहीं होता या हम यह नहीं जानते कि शुरुआत कहाँ से करें. ऐसे में “मैं नहीं जानता” कहने के बजाय “मैं यह जानकर रहूँगा” कहने की आदत डालें. यह टिप दिखने में आसान है पर बड़े करिश्मे कर सकती है. इसे अपनाकर आप बिजनेस में आगे रहने के लिए ज़रूरी आक्रामकता दिखा सकते हैं. आप योजनाबद्ध तरीके से अपनी किताबें छपवा सकते हैं. और यदि आप ठान ही लें तो पूरी दुनिया घूमने के लिए भी निकल सकते हैं. संकल्प लें कि आप जानकारी नहीं होने को अपनी प्रगति की राह का रोड़ा नहीं बनने देंगे.

अपने हुनर और काबिलियत को निखारें:

पेन और पेपर लें. पेपर के बीच एक लाइन खींचकर दो कॉलम बनायें. पहले कॉलम में अपने पिछले तीस दिनों के सारे गैरज़रूरी खर्चे लिखें जैसे अनावश्यक कपड़ों, शौपिंग, जंक फ़ूड, सिनेमा, मौज-मजे में खर्च की गयी रकम. हर महीने चुकाए जाने वाले ज़रूरी बिलों की रकम इसमें शामिल न करें. अब दूसरे कॉलम में उन चीज़ों के बारे में लिखें जिन्हें आप पैसे की कमी के कारण कर नहीं पा रहे हैं. शायद आप किसी वर्कशौप या कोचिंग में जाना चाहते हों या आपको एक्सरसाइज बाइक खरीदनी हो. आप पहले कॉलम में किये गए खर्चों में कटौती करके दुसरे कॉलम में शामिल चीज़ों के लिए जगह बना सकते हैं.