हमेशा अपनी पूरी तन्मयता, एकाग्रता से काम करो, उसमें अपना मन, तन और हृदय लगा दो। फल को महत्व मत दो।
यही फॉर्मूला है : स्मरण करो, समर्पण करो और पूरी निष्ठा से कर्म करो।
तुम्हारे हाथ में केवल यह एक चीज है कर्म, फल तुम्हारे हाथ में नहीं है।
हर रोज, सुबह से शाम तक, जब तक तुम काम कर रहे हो उस दिव्य को याद रखो और उसे ही अर्पित करो। फल की चिन्ता ना करो।
कहने का ये तात्पर्य नही है कि फल की इच्छा के बिना ही कर्म किये जाओ। ऐसे तो निराशा मन में व्याप्त हो जायेगी। इसका अर्थ ये है कि यदि कर्म करोगे तो फल तो मिलेगा ही उसके लिये चिन्ता क्यों करते हो।
फिर यदि कार्य का फल ना मिले तो इसका मतलब ये नहीं कि ईश्वर ने उसका फल आपको नही दिया बल्कि इसका मतलब ये है कि आपने सही दिशा में प्रयास ही नही किया।
कोई भी काम हो , कैसा भी उद्देश्य हो , उसमें सफलता सिर्फ प्रार्थना करने , दूसरों की खामियां निकालने , व्यवस्था को कोसने अथवा अभावों का रोना रोने से नहीं मिलती। किसी भी कार्य में सफलता तब मिलती है जब किसी उद्देश्य को लेकर हम एकाग्र हों और पूरे समर्पण से वह कार्य करें।
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