मनुष्य को अपने जीवन में विकास करने के लिए प्रयत्न तो करना ही पड़ता है। प्रयत्न करने का पूरा साहस चाहिए, खाली बातों से विकास नही होता। पहले अपने जीवन का लक्ष्य तय करें, कि मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है, मुझे क्या खोजना है, मैं क्या हो सकता हूँ और मुझे क्या होना चाहिए, तब आगे बात बन सकती है। और आप सोचे जो पीछे से चलता आ रहा है, वो ही आगे चलता रहेगा यानि कि लकीर के फकीर सुनी-सुनाई बातों पर चलते रहे। उससे कुछ भी विकास नही होगा, आपके अंदर नया करने की क्षमता चाहिए। तभी आप आगे बढ़ेंगे, और लोगों का मार्ग दर्शन कर सकते है। मार्ग दर्शन तो आपको भी चाहिए और आपसे बढ़िया आपका मार्ग दर्शक कोई नही हो सकता। आप ही जब तक अपने स्वभाव को नहीं जानेंगे, तब तक आपको दूसरे की मार्ग दर्शन की जरुरत पड़ सकती है। हम तो ये बता सकते है कि आप इस विधि से अपने आपको जानने लगेंगे और जानने के बाद में आपको अपना स्वयं आत्म-गुरु बनना है। दूसरा गुरु तो आपको कहीं-न-कहीं बहका सकता है, भटका भी सकता है। क्योंकि अब वो समय आ गया है, कि लोगों के पास गुरु की सत्ता को स्वीकार करने का समय नही है। उसकी अपनी सत्ता इतनी बड़ी है कि उसको ही नही सम्भाल पा रहा है, वो गुरु की सत्ता कहाँ संभालेगा। और आप जिस गुरु से मार्ग दर्शन लें, मार्ग दर्शन लेने के बाद अपने आप तक अपनी पहुँच बनाये और अपने स्वभाव को जानने के बाद फिर चले आगे की ओर। फिर तो आप अपने स्वयं के मार्ग दर्शक हो जायेंगे।
अगर दूसरा मार्गदर्शन देगा तो आप दूसरे के रास्ते पर चलेंगे, जरुरी नहीं है कि आप अपनी मंजिल पर पहुंच जाये। दूसरा कभी-कभी आपके स्वभाव को नहीं जान पाता और आप अपनी मंजिल को पूरी तरह प्राप्त नही कर पाते। आपको तो स्वयं को जानना है, उसके द्वारा ही आपके अंदर चेतना जाग्रत हो सकती है और धैर्य भी प्राप्त हो सकता है। पहली बात तो बिना धैर्य के आप साधना मे भटक जायेंगे। बहुत-से लोग जल्दी-जल्दी जानने की कोशिश करते है। आदमी का जो पूरा सिस्टम है, उसकी जो आंतरिक गठन है वो सहज नही है, बैचेनी से भरा है और जल्दबाजी में सब कुछ सीखना चाहता है, जिससे वह अपने आपको धोखे में रखता है। उसको भ्रांतियां होती है और उन भ्रांतियों की वजह से वो फ़ैल होता है, उसको यह भ्रम रहता है कि वह इसमें सफल हो जायेगा क्योंकि वो अपनी पूर्ण योग्यता को जान नही पाता और न ही इस्तेमाल कर पाता। जो योग्यता नही होती है और वो ये समझता है कि ये योग्यता मेरे अंदर है, यही उसकी असफलता का कारण है। अगर उसको ये भ्रांति हो जाये कि तेरे अंदर ये योग्यता है और तू कर गुजरेगा, पहले इन भ्रांतियों से छुटकारा पाना होगा। स्वयं को जानने की प्रक्रिया पर चलना होगा और अपने स्वभाव को जानना होगा, क्योंकि साधना के मार्ग पर प्रयत्न तो आपको ही करना होगा। इसके बिना आपके जीवन में रूपांतरण घटित नही हो सकता।
मैं आपसे आध्यात्म या दर्शन की बात नहीं कर रहा हूँ, मैं अच्छे जीवन की बात कर रहा हूँ, जो अच्छा जीवन आपको जीना है। मैं आपके पुराने तौर-तरीके से जीवन जीने की शैली में रूपांतरण लाने की बात कर रहा हूँ। अगर आपको पहले से बढ़िया जीवन जीना हैं, तो पहले आपको रूपांतरित होना होगा। क्योंकि वहां पर बैठे रहकर और वैसा ही सोचकर आप रूपांतरित नही हो सकते, अगर आपको बदलना है तो वहां से हटना होगा, वहां से हटोगे तो अलग सोचोगे, तभी रूपांतरण आएगा जीवन में। हरेक आदमी में साहस नही होता कि वह रूपांतरण के लिए तैयार हो जाये। अगर आप रूपांतरण के लिए तैयार हो जायेंगे, तो आप वो नही रहेंगे जो आप पहले थे। आपका एक नया व्यक्तित्व आपके सामने आएगा। वही व्यक्तित्व आपके पूर्ण रूपांतरण की बात करता है क्योंकि आप संतुष्ट नहीं है अपने आपमें। पर आपको सही मार्ग का पता नही, असंतुष्ट आदमी जो कुछ होना चाहता है, या तो वो उसकी टाइप नही है या फिर वो पुराने रास्ते पर चलना चाहता है। उसको डर है नए रास्ते पर चलने का। ध्यान और साधना का मार्ग बिल्कुल अकेले का है, आपका अपना नया मार्ग है। जब आप ध्यान व साधना के मार्ग से अपने अंदर प्रवेश करेंगे और अपने आपको जानने लगेंगे, तभी मिलेगी आपको अपनी सही दिशा। आप जो होना चाहते है, आपकी अपनी टाइप, अपना स्वभाव जानने के बाद आपके अंदर रूपांतरण घटित होगा। इस प्रयास में चूके नही, चूकने से रूकावट पड़ जाती है। साधना के मार्ग पर चलने से रुकना नहीं है, रूपांतरण अवश्य घटित होगा।
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